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जनविद्या-13 ]
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विषय
धम्मपरिक्खा (हरिषेण)
चतुर्दश परिच्छेद
7.1-4
7.5-8
धर्मपरीक्षा
(अमितगति) मनोवेग से पटना वादशाला में 14.1-32 पहुंच कर अपने को वृहत्कुमारिका का पुत्र बताया और विस्तार से उसका कथन है माँ का पुनर्विवाह और पुराणों 14.33-54 द्वारा उसका समर्थन भागीरथी से भागीरथ और 14.55-61 गांधारी से सौ पुत्रों की उत्पत्तिकथा बारह वर्ष तक गर्भ में रहना 14.62-67 यमकन्या ने भी सात हजार वर्ष 16.68-80 तक गर्भ रखा पाराशर और योजनगंध-कथा 14.81-91 उद्दालक और चन्द्रमुखी कथा 14.92-101
7.9
7.10
7.11-13
7.14-15
7.16-17
पंचदश परिच्छेद समापन
15.1-15
7.18 यहाँ समापन अधिक युक्तिसंगत है। 8.1
15.16-21
15.22-31
8.2
15.32-41.
8.3
15.2-55
8.4-5
कर्णकथा पाण्डु-चित्रांगद में संवाद कर्ण-कुन्ती का विवाह पाण्डवों का मोक्ष-गमन व्यास का गंगा-स्नान, यहाँ पुराणों की समीक्षा जैन-दृष्टिकोण से की गई है। बौद्ध-भिक्षुत्रों को शृगाल द्वारा उठा लिए जानेवाली कथा का उल्लेख
15.56-66
8.6 हरिषेण ने इसे छोड़ दिया हैं । 8.7-9
15.67-94