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________________ जनविद्या-13 ] [ 59 विषय धम्मपरिक्खा (हरिषेण) चतुर्दश परिच्छेद 7.1-4 7.5-8 धर्मपरीक्षा (अमितगति) मनोवेग से पटना वादशाला में 14.1-32 पहुंच कर अपने को वृहत्कुमारिका का पुत्र बताया और विस्तार से उसका कथन है माँ का पुनर्विवाह और पुराणों 14.33-54 द्वारा उसका समर्थन भागीरथी से भागीरथ और 14.55-61 गांधारी से सौ पुत्रों की उत्पत्तिकथा बारह वर्ष तक गर्भ में रहना 14.62-67 यमकन्या ने भी सात हजार वर्ष 16.68-80 तक गर्भ रखा पाराशर और योजनगंध-कथा 14.81-91 उद्दालक और चन्द्रमुखी कथा 14.92-101 7.9 7.10 7.11-13 7.14-15 7.16-17 पंचदश परिच्छेद समापन 15.1-15 7.18 यहाँ समापन अधिक युक्तिसंगत है। 8.1 15.16-21 15.22-31 8.2 15.32-41. 8.3 15.2-55 8.4-5 कर्णकथा पाण्डु-चित्रांगद में संवाद कर्ण-कुन्ती का विवाह पाण्डवों का मोक्ष-गमन व्यास का गंगा-स्नान, यहाँ पुराणों की समीक्षा जैन-दृष्टिकोण से की गई है। बौद्ध-भिक्षुत्रों को शृगाल द्वारा उठा लिए जानेवाली कथा का उल्लेख 15.56-66 8.6 हरिषेण ने इसे छोड़ दिया हैं । 8.7-9 15.67-94
SR No.524761
Book TitleJain Vidya 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1993
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size8 MB
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