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जनविद्या-13 ]
अप्रेल-1993
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आचार्य अमितगति और हरिषेण की
__-- धर्मपरीक्षा एक तुलनात्मक अध्ययन
डॉ. भागचन्द जैन 'भास्कर'
प्राचार्य अमितगति माथुरसंघ के प्रसिद्ध जैनाचार्य थे जिनकी रचनाधर्मिता का उद्देश्य समाज में सत्प्रवृत्तियों को जागृत करना रहा है । संस्कृत पर उनका असाधारण अधिकार था, जैन दर्शन के वे कुशल अध्येता थे और काव्य-सिद्धान्तों के मर्मज्ञ । सुभाषितरत्नसंदोह, श्रावकाचार, पंचसंग्रह, आराधना भगवती, भावना-द्वात्रिंशतिका, सामायिक पाठ और धर्मपरीक्षा जैसे आकर्षक ग्रन्थ उनकी ही लेखनी से प्रसूत हुए हैं । इन ग्रन्थों में धर्मपरीक्षा हमारा अभिधेय है।
उद्देश्य-धर्मपरीक्षा का उद्देश्य मिथ्यात्व से आपूरित कथानों का सयुक्तिक खंडन रहा है । उसने हरिभद्रसूरि को घूर्ताख्यान की परम्परा को बखूबी आगे बढ़ाया है। इसमें मनोवेग अपने अभिन्न मित्र पवनवेग से इसी प्रकार की कल्पित कथाओं का सहारा लेकर पौराणिक आख्यानों पर आक्षेप करता है । यही परम्परा दार्शनिक क्षेत्र में मिथ्यात्वखण्डन के रूप में दिखाई देती है।
प्राकृत कथा-साहित्य का समय लगभग चतुर्थ शताब्दी से प्रारम्भ हो जाता है। इसी समय पौराणिक शैली भी प्रचलित हुई जिसमें अतीत कथाओं के साथ ही नवोदित प्रवृत्तियों और परिस्थितियों के अनुरूप उनमें परिवर्तन और परिवर्धन किया गया ।