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________________ जनविद्या 12 37 और प्राभ्यन्तर कारण से जो स्नेहपर्याय उत्पन्न होती है, उससे उसे पुद्गल स्निग्ध कहा जाता है । (5.33) जघन्य जघन्यो निकृष्ट:-जघन्य शब्द का अर्थ निकृष्ट है । (5.34) गुण अन्वयिनो गुणाः-गुण अन्वयी होते हैं । (5.38) पर्याय व्यतिरेकिणः पर्यायाः-पर्याय व्यतिरेकी होती हैं । (5.38) परिणाम-- धर्मादीनि द्रव्याणि येनात्मना भवन्ति स तद्भावस्तत्त्व परिणाम इति व्याख्यायतेधर्मादिक द्रव्य जिस रूप से होते हैं, वह तद्भाव या तत्त्व है और इसे ही परिणाम कहते हैं । (5-42) . - इस प्रकार जैन पारिभाषिक शब्दों के सरल, नपे तुले और अर्थगाम्भीर्य से युक्त शब्दों में प्राचार्य पूज्यपाद ने लक्षण निर्धारित किए हैं। ऐसे लक्षणों से पूरी सर्वार्थसिद्धि प्रोतप्रोत है। इन लक्षणों ने परवर्ती लेखकों के लिए दीप-स्तम्भ का कार्य किया है । इन लक्षणों की उपादेयता स्वतःसिद्ध है। 0 जैनमंदिर के पास बिजनौर (उ.प्र.) लक्ष्मीरात्यन्तिको यस्य, निरवद्यावभासते । देवनंदितपूजेशे, नमस्तस्मै स्वयंभुवे ॥ -प्राचार्य पूज्यपाद : जैनेन्द्र व्याकरण . मंगलाचरण
SR No.524760
Book TitleJain Vidya 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size10 MB
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