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________________ मुखपृष्ठ-चित्रपरिचय मुखपृष्ठ पर मुद्रित चित्र क्षेत्रान्तर्गत पाण्डुलिपिविभाग में उपलब्ध आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित समयसार ग्रन्थ की प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत संस्कृत 'आत्मख्याति' टीका (ढुंढारी भाषा में टिप्पणसहित) की पाण्डुलिपि सं. 3942, पत्र संख्या 171, आकार 28x13 सें. मी., लिपि सं. 1773, लिपिस्थान चाटसू के अन्तिम दो पृष्ठों का है जिसका पाठ निम्न प्रकार है भुंजाना कहतां भोगयौ । भावार्थ इसौ जु । आठ ही कर्म कै उदै जीउ अत्यन्त दुखी छै । सो फुनि क्रिया का फल थकी ।। छः ।। स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वै ाख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः । स्वरूपगुप्तस्य न किंचिदस्ति कर्त्तव्यमेवामृतचन्द्रसूरिः ।। 32 ।। अर्थ : ।।अमृतचन्द्रसूरेः किंचित् कर्त्तव्यं न अस्ति एव अमृतचन्द्रसूरे: कहतां ग्रंथकर्ता को नाम छै ।। तिहि कौ किंचित् कहतां नाटक समयसारथकी कर्त्तव्यं कहतां करिवौ न अस्ति कहतां नही छै । भावार्थ इसौ जु । नाटक समयसार ग्रंथ की टीका कौ कर्ता अमृतचन्द्र नाम आचार्य छता छै । तथापि महांन छै बड़ा छ । संसार तहि विरक्त छ । तिहि तहि ग्रंथ करिवा कौ अभिमान नही करै छै । किसा छ अमृतचन्द्रसूरि । स्वरूपगुप्तस्य कहतां द्वादशांगरूप सूत्र अनादिनिधन छै । कोई कौ कीयौ नही छै । इसौ जानि आपु कौं ग्रंथ कौ कर्त्तापनौ नही मान्यौं छै । जिहि इसौ छै । इसौ क्यौं छै । जिहि नै समयस्य इयं व्याख्या शब्दैः कृता । समयस्य कहतां शुद्ध जीव स्वरूप की । इयं व्याख्या कहतां नाटक समयसार नाम ग्रंथ रूप बखानु । शब्दैः कृता कहतां वचनात्मक छै ये शब्दरासि । त्यांह करि करी छै । किस्यौ छै शब्दरासि । स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वैः । स्वशक्ति कहतां शब्द माहै छै । अर्थ सूचिवा की शक्ति । तिहि करि संसूचित कहतां प्रकाशमान हूवा छै । वस्तु कहतां जीवादि पदार्थ त्यांह कां तत्त्वैः कहतां किस्यौ क्यौं द्रव्यगुणपर्यायरूप । उत्पादव्ययध्रौव्यरूप अथवा हेयउपादेयरूप वस्तु को निहचौ ज्यांह करि इस्या छै शब्दरासि ।। छः ॥ इति समयसार नाटक सटीपनका समाप्तम् ।। संवत् 1773 वर्षे ।। मगिसिर वदि 7 दिने ।। वृहस्पतिवारे ।। श्री चाटसू मध्ये लिखतम् ।। यादृशं पुस्तकं दृष्टं । तादृशं लिखतं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा । मम दोषो न दीयतां ॥ 1 ॥ कल्याणमस्तु: ।। छः ॥ श्रीरस्तुः ।। शुभं भवतु ।। लेखकपाठकयोः ।। श्रीः ।। छः ॥
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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