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________________ 138 जैनविद्या (अ) । भकृ संकेत-सूची [( )-( )-( ).... ] -अव्यय (इसका अर्थ = इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' चिह्न ___ लगाकर लिखा गया है) समास का द्यो प्रक -अकर्मक क्रिया [ [ ( )-( )-( ).... ] वि ] अनि -अनियमित जहाँ समस्त पद विशेषण का काम करता प्राज्ञा -प्राज्ञा है, वहाँ इस प्रकार के कोष्ठक का प्रयोग कर्म -कर्मवाच्य किया गया है। (क्रिविन) -क्रिया विशेषण अव्यय • जहाँ कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (इसका अर्थ लगाकर [जैसे 1/1, 2/1...आदि) ही लिखी है, लिखा गया है) वहाँ कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है। -तुलनात्मक विशेषण • जहाँ कर्मवाच्य, कृदन्त आदि प्राकृत के -पुल्लिग नियमानुसार नहीं बने हैं, वहाँ कोष्ठक के -प्रेरणार्थक क्रिया बाहर 'अनि' भी लिखा गया है । - भविष्य कृदन्त भवि -भविष्यत्काल 1/1-प्रथमा/एकवचन भाव -भाववाच्य 1/2-प्रथमा/बहुवचन -भूतकाल 2/1-द्वितीया/एकवचन -भूतकालिक कृदन्त 2/2-द्वितीया/बहुवचन -वर्तमानकाल 3/1-तृतीया/एकवचन वकृ -वर्तमान कृदन्त 3/2-तृतीया/बहुवचन -विशेषण 4/1 - चतुर्थी/एकवचन विधि -विधि 4/2- चतुर्थी/बहुवचन विधिक -विधि कृदन्त 5/1-पंचमी/एकवचन -सर्वनाम 5/2-पंचमी/बहुवचन संकृ -सम्बन्ध कृदन्त 6/1-षष्ठी/एकवचन सक -सकर्मक क्रिया 6/2-षष्ठी/बहुवचन -सर्वनाम विशेषण 7/1-सप्तमी/एकवचन -स्त्रीलिंग 7/2-सप्तमी/बहुवचन -हेत्वर्थ कृदन्त 8/1-संबोधन/एकवचन ( ) -इस प्रकार के कोष्ठक में 8/2-संबोधन 'बहुवचन मूल शब्द रक्खा गया है। 1/1 अक या सक-उत्तम पुरुष/एकवचन [ ( ) + ( )+ ( ).... ] 1/2 अक या सक-उत्तम पुरुष/बहुवचन इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न 2/1 अक या सक-मध्यम पुरुष/एकवचन किन्हीं शब्दों में संधि का द्योतक है । यहाँ 2/2 अक या सक-मध्यम पुरुष/बहुवचन अन्दर के कोष्ठकों में गाथा के शब्द ही रख 3/1 अक या सक-अन्य पुरुष/एकवचन दिये गये हैं। 3/2 अक या सक-अन्य पुरुष/बहुवचन वि सवि स्त्री
SR No.524759
Book TitleJain Vidya 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1990
Total Pages180
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size15 MB
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