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अशरण-भावना
पइसरउ, सुरलोउ
अह विवरे सुरगिरिहि आरुहउ, पंजहि तणु बंधवह मिर्त्ताह, पुत्तह सुत्थियउ, ह भरियर परियरउ, उ तेहि
पुणु
बल एउ चक्कहरू, सुरणाहु हे
खयरु ।
जमु वरुणु धरधरणु, ण वि होइ कु वि होइ कु वि सरणु ।
प्रणुसरउ । छुहउ ।
करधरियकुंते हि ।
रक्खयउ ।
धरिउ ।
अर्थ - चाहे गुफा में प्रवेश कर ले, चाहे सुरलोक का अनुसरण करे । चाहे सुमेरु पर चढ़ जाए या अपने शरीर को पिंजड़े में बन्द कर ले । चाहे बन्धु, मित्र एवं पुत्रगण अपने हाथों में भाले लिये बचाते रहें, मन्त्र से रक्षा करते रहें या योद्धाओं के समूह से घेरे रहें फिर भी मृत्यु से बचा नहीं जा सकता। ये भी उसकी रक्षा नहीं कर सकते । बलदेव, चक्रधारी, खगेन्द्र, वरुण, शेषनाग इनमें से कोई भी ( उसका ) शरण नहीं हो सकता ।
करकण्डचरिउ 9.7