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ता हरिसुक्कंठऍ खयरेण, लोयहं परिग्रक्विड सुन्दरेण । मायंगहो सुउ णउ होइ एह, रिगवणंदणु एहउ दिव्यदेहु ।
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जयघोसु पर्वाड्डउ गयरणयले करणया मरवाह मारणर्वाह करकंड
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भ्रमरेहि सुमंगलु पूरियउ ।
विधि का विधान कैसा विचित्र है ? साम्राज्ञियां श्मशान में प्रसव के लिए प्रेरित हैं मौर राजकुमार मातंगों द्वारा पालितपोषित है । इस प्रकार करकंड का श्मशान से उद्धार होता है और वह राजा बनता है । कैसी प्रसंगति श्रोर कैसे एकरेखीय संगति में पिरो दी गई हैं कि दोनों छोर जुड़कर समाधेय हो गये हैं । यह अभिप्राय अन्यान्य रूपों में जनता की जिह्वा पर चटखारों के साथ आज भी प्रासन जमाए है ।
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रज्जे वइसारियउ । 12.21
जब अनजान में पिता-पुत्र करती है । इस अभिप्राय के एक स्थान पर सीता परिचय
मानव सम्बन्धी एक अन्य अभिप्राय तब सामने प्राता है, मांडलीक भावना से जूझ उठते हैं। बीच-बचाव रानी माता दर्शन लवकुश वृत्त और अर्जुन वभ्रुवाहन वृत्त में भी होते हैं । कराती है और दूसरी जगह अलोपी समाधान करती है। पारस की रुस्तम - सोहराब की कथा का मूल प्राधार तो यही अभिप्राय है । नई पीढ़ी की परख ने नाद से अर्थ की सृष्टि की है और कथ्य को भोज के चित्रात्मक और अप्रतिहत है -
की यह अच्छी कसौटी है ।
कवि वेष्टन में लपेट दिया है, भाषा
ता रोसें चंपहिउ गरिबु,
रह चडिवि पधायउ णं सुरिंबु । सो तुरिउ गयउ परबलणिवासु, ग्रभिडियउ करकंडहो णिवासु ।
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सर पेसिय जा चंपाहिवेण, करकंडहो बलु भग्गउ खगेण । करकंडए पेच्छिवि बलु चलिउ मरिण रोसु जा बिज्ज पइण्णी लेयर तहे पेसणु
जैन विद्या
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टंकारस घोरें रउब्वेण । धरणियलु तडयडिउ, तस कुम्मु कडयडिउ । भुवणयसु खलभलिउ, गिरिपवर टलटलिउ ।
महंत विष्फुरिउ । विष्णउ तें तुरिउ ।। 3.16
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खगणाहु परिसरिज, सुरराउ रहरिउ । सो सदु सुणेविणुधणुगुणहो रह भग्गा णट्ठा गयपवर ।
मउगलियर चंपणराहिवहो भयभीय ण चल्लह कहि खयर ॥ 3.18
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