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________________ 86 स्त्रीलिंग सव्वा एकवचन प्र. सव्वा, सव्व द्वि. सव्वा, सव्व तृ. सव्वाए, सव्वए च. सव्वा, सव्व व ष. सव्वाहे, सव्वहे पं सव्वाहे, सव्वहे स. सव्वाहिं, सव्र्व्वाहि नोट बहुवचन सव्वा, सव्व सव्वाउ, सव्वउ सव्वाप्रो, सव्व सव्वा, सव्व सव्वाउ, सव्वउ सव्वा, सव्व सव्वाहिं, सव्वहिं सव्वा, सव्व सव्वाहु, सव्वहु सव्वाहु, सव्वहु सव्वाहि सव्वहिं - सब्व (पु., नपुं.) के रूप पंचमी एकवचन (4/355) और सप्तमी एकवचन (4/357) के अतिरिक्त पुल्लिंग देव तथा नपुंसकलिंग कमल के समान चलेंगे । सव्वा (स्त्री.) के रूप स्त्रीलिंग कहा चलेंगे | अपभ्रंश सव्व और सव्वा के रूपों में प्राकृत के रूप- प्रयोग चलते * रहे । उनका विवेचन अलग से किया जायेगा । समान पुल्लिंग - ( वह) एकवचन प्र. स, सा, सु, सो त्रं, तं द्वि. त्रं, तं तृ. तें, तेरा, तेणं च. व ष. त, ता तसु, तासु तहो, ताहो, तस्सु तासु पं. तहां, ताहां स. तहि, ताहि जनविद्या बहुवचन त, ता तह, ताहि हि त, ता तहं, ताहं तहुँ, ताहुं तहि, ताहि नोट - त (पु.) के रूप प्रथमा एकवचन, द्वितीया एकवचन, (4/360) षष्ठी एकवचन (4/358) के अतिरिक्त 'सव्व' (पु.) के समान चलेंगे । त के रूपों में प्राकृत के रूप-प्रयोग चलते रहे । उनका विवेचन अलग से किया जायेगा ।
SR No.524757
Book TitleJain Vidya 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1988
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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