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________________ 02 जनविद्या विभक्ति एकवचन के प्रत्यय बहुवचन के प्रत्यय प्रथमा जस् द्वितीया शस तृतीया भिस चतुर्थी भ्यस् पंचमी भ्यस् षष्ठी प्राम् सप्तमी इनमें से (1) सि. इसि, और डि के रूप 'हरि" की तरह चलेंगे। जैसे 'सि' का सप्तमी एकवचन में 'सौ' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में 'सिना' रूप बनेगा । इसी प्रकार दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिये । . (2) अम्, जस्, शस्, भिस्, भ्यस्, पाम् और सुप् आदि के रूप हलन्त शब्द भूभृत् की तरह चलेंगे । जैसे भिस् का सप्तमी एकवचन में रूप बनेगा 'भिसि', 'अम्' का प्रथमा एकवचन के रूप बनेगा 'पम्', 'सि' का षष्ठी एकवचन में रूप बनेगा 'इसेः' । इसी प्रकार दूसरे रूप भी समझ लेने चाहिये। (3) 'टा' के रूप ‘गोपा' की तरह चलेंगे । जैसे 'टा' का सप्तमी एकवचन में 'टि' रूप बनेगा, षष्ठी एकवचन में 'ट:' रूप बनेगा, तृतीया एकवचन में टा' बनेगा। इसी प्रकार दूसरे रूप बना लेने चाहिये। (4) उत्+उ, प्रोत्-+यो, एत्-+ए, इत्+इ, पात्-या आदि हलन्त शब्दों के रूप भी भूमत की तरह ही चलेंगे। 'लुक्' शब्द के रूप भी इसी प्रकार चलेंगे। ..... (5) इनके अतिरिक्त कुछ दूसरे शब्द सूत्रों में प्रयुक्त हुए हैं। उनके रूपों को संस्कृत ध्याकरण से समझ लेने चाहिये । उन शब्दों के रूप कहीं 'राम' को तरह, कहीं 'स्त्री' की तरह, कहीं 'गुरु' की तरह चलेंगे । इसी प्रकार दूसरे शब्दों को समझ लेना चाहिये । ... सूत्रों को पांच सोपानों में समझाया गया है(1) सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धिविच्छेद किया गया है, (2)- सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियां लिखी गई हैं, . .., (3) सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, (4) सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा (5) सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। अगले पृष्ठों में संज्ञा से संबन्धित सूत्र दिए गये हैं। इन सूत्रों से निम्न तेरह प्रकार के शब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे -
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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