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जनविद्या
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एयउ (एया) 1/2 सवि सीलकमलसरहंसिउ [(सील)-(कमल)-(सर)-(हंसी) 1/2] परिणणरत्यरामरहि फणिणरसयरामरहिं [(फणि)+ (णर)+ (खयर)+ .
स्वी. (अमरहिं)] [(फणि)-(गर)-(ख-यर)-(अमर) 3/2] पसंसिउ (पसंस + पसंसी) 1/2 वि ।
(6) जणरिण (जणणि) 8/1 ए (म)=आमन्त्रण का चिह्न= (हे) छारपुंज[(छार)(पुंज) 1/1] वरि (प्र)=अधिक अच्छा जायउ (जा--जाम22-+जाय) विधि 3/1 प्रक गउ (म)=नहीं कुसील (कुसील) 1/1 मयणेजुम्मायउ [(मयणेण)+ (उम्मायउ)] मयरणेण (मयण) 3/1 उम्मायउ8 (उम्मायम) 1/1 वि ।
(7) ____ सीलवंतु (सीलवंत) 1/1 वि पुहयणे =बुहयणे (बुहयण) 3/1 सलहिन्मइ (सलह) व कर्म 3/1 सक सोलविवज्जिएण [(सील)-(विवाज्जिन) 3/1] कि (किं) 1/1 सवि किज्जइ (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक भनि ।
(8) घत्ता-इय(इन)2/1 स नाणेषिणु (जाण+एविणु) संकृ सीलु (सील)2/1 परिपालिज्जए - (परिपाल-परिपालिज्ज) व कर्म 3/1 सक मा (मा) 8/1 ए (अ)=हे महासइ (महासइ)
स्त्री 8/1 रणं (म)=है तो (प्र)=तो लाहु (लाह) 1/1 णियंतिहे (णिय-णियंत→ णियंती)346/1 हले (हला) 8/1=हे सखि. मूलछेउ [(मूल)-(छेप्र) 1/1] तुह (तुम्ह) 6/1 होसइ (हो) भवि 3/1 अक।
(9,10) अन्य सुन्दर प्राभूषणों के (समान) युवती का शील भी प्राभूषण समझा गया (है) (मौर) कहा गया (है) (1) । जो सीता रावण के द्वारा हरण करके ले जाई गई (वह), जैसा कि बतलाया जाता है, शील के कारण अग्नि के द्वारा नहीं जलाई गई (2) । उसी प्रकार कठोर शीलधारण की हुई मनन्तमती विद्याधरों और जंगली (मनुष्यों) के उपद्रव से रहित हुई (3) । तेज धारवाले (नदी के) के जल में डुबाई गई रोहिणी, शील गुण के कारण नदी के द्वारा नहीं बहाई गई (4) । नारायण, बलदेव, चक्रवर्ती तथा तीर्थकर-(इनकी) माताएं आज भी (शील के कारण) तीनलोक में प्रसिद्ध (१) (5)। ये शीलरूपी कमलसरोवर की हंसनि (थीं), (प्रतः) (वे) नागों, मनुष्यों, आकाश में चलनेवाले (मनुष्यों) और देवों द्वारा प्रशंसा के योग्य (हुई) (6) । हे माता ! (यदि) (कोई) (जलकर) राख का ढेर हो जाए (तो) (यह) अधिक अच्छा (है),(किन्तु) काम-वासना के कारण पागलपन पैदा करनेपाला कुशील (अच्छा) नहीं (है) (7) । बिद्वान् व्यक्ति के द्वारा शीलवान (मनुष्य) प्रशंसा किया जाता है । (कोई बताए) शीलरहित होने से क्या (प्रयोजन) सिद्ध किया जाता है (8)? 22. प्रकारान्त धातुओं के अतिरिक्त शेष स्वरान्त धातुओं में 'अ' (य) विकल्प से जुड़ता है,
अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 2651 23. उन्मादक=उन्मायन। 24. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
हि. प्रा. बा. 3-134)