________________
जनविद्या
(11)
(14)
जंगलु (जंगल) 2/1 असंतु (प्रस-असंत) वकृ 1/1 वणु (वण) 1/1 रक्खसु (रक्खस) 1/1 मारिउ (मार-+मारिअ) भूकृ 1/1 परए (णरअ) 7/1 पत्त (पत्त) भूक 1/1 अनि ।
- मइरापमत्तु [(मइरा)-(पमत्त) भूकृ 1/1 अनि] कलहेप्पिणु (कलह+एप्पिणु) संकृ हिंसइ (हिंस) व 3/1 सक इट्टमित्त [(इठ्ठ)-(मित्त) 2/1] । . (12)
रच्छहे' (रच्छ) 6/1 पडेइ (पड) व 3/1 अक उम्भियकर [(उन्भ-+उब्भिय) संक (कर)2/1] विहलंघलु (विहलंघल) 1/1 वि पडेइ (णड) व 3/1 प्रक। (13)
___ होता (हो-होंत) वकृ 1/2 सगव्व (सगव्व) 1/2 वि गय (गय) भूकृ 1/2 अनि जायव (जायव) 1/2 मज्जें=मज्जे (मज्ज) 3/1 खयहो (खय) 6/1 सव्व (सव्व) 1/21
साइणि* (साइणी) 1/1 व (अ)=की तरह वेस (वेसा) 1/1 रत्तापरिसण (रक्त+रक्ता-घरिसण) 2/1 ।
. (15) सहो (त) 6/1 स जो (ज) 1/1 सवि वसेइ (वस) व 3/1 प्रक सो (त) 1/1 सवि कायर (कायर) 1/1 वि उच्छिउ (उच्छिट्ठप्र) 2/1 'अ' स्वार्थिक असेइ (प्रस) व 3/1 सक।
(16) . वेसापमत्तु [(वेसा)-(पमत्त) भूकृ 1/1 पनि] रिणवणु (णिखण) 1/1 वि हुउ (हप्र) भूक 1/1 इह (अ)=यहां वणि (वणि) 1/1 वि चारुदत्त (चारुदत्त) 1/1।
(17) कयबीणवेसु [(कय) भूक अनि-(दीण) वि-(वेस) 1/1] णासंतु (णास) वकृ 1/1 परम्मुह (परम्मुह) 1/1 वि छुट्टकेसु [(छुट्ट) भूक अनि-(केसु) 1/1] । (18)
जे (ज) 1/2 स सूर 1/2 वि होंति (हो) व 3/2 अक सवरा (सवर) 1/2 हु (अ)=ही वि (अ)=चाहे सो (त) 1/1 सवि ते (त) 1/1 सवि गउ (अ)=नहीं हणति (हण) व 3/2 सक।
(19)
-
6. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
_ [हे-प्रा-व्या 3-135] 7. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है ।
[हे. प्रा. व्या. 3-134] 8. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग द्वितीया विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है।
[हे. प्रा. व्या. 3-134] * साइणि=शकिनी=पिशाचिनी [संस्कृत-हिन्दी कोष] 9. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में हस्व के स्थान पर दीर्घ हो जाते हैं।
[हे. प्रा. व्या. 1-4] ।