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________________ सुदंसणचरिउ के मूल्यात्मक प्रसंग एक व्याकरणिक विश्लेषण - डॉ. कमलचन्द सोगाणी मनुष्यों का मूल्यात्मक व्यवहार ही समाज के चहुंमुखी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है । व्यवहार में मूल्यों का प्रभाव समाज में अराजकता को जन्म देता है । कर्तव्यहीनता, दुराचार व शोषण नैतिक मूल्यों में अनास्था का परिणाम है। नैतिक मूल्यों का वातावरण नैतिक मूल्यों के ग्रहण की प्रथम सीढ़ी है। इस वातावरण के निर्माण में काव्य का बहुत बड़ा योगदान होता है । रस, अलंकार मोर छन्द काव्यरूपी शरीर को निस्संदेह सौन्दर्य प्रदान करते हैं, किन्तु काव्यरूपी शरीर का प्राण होता है मूल्यात्मक चेतना की उसमें उपस्थिति । काव्य में प्रत्येक रस की प्रभिव्यक्ति एक विशिष्ट प्रयोजन को लिये हुए होती है, किन्तु काव्य का अन्तिम प्रयोजन समाज में शाश्वत मूल्यों को सींचना व उनको जीवित रखना ही होना चाहिए । सामयिक मूल्यों के लिए लिखा गया काव्य महत्त्वपूर्ण हो सकता है, पर उसमें प्रतिपादित शाश्वत मूल्य ही उसको अमरता प्रदान करते हैं। नयनंदी कृत सुदंसणचरिउ ( सुदर्शन-चरित) जीवन-मूल्यों के प्रति समर्पित एक चरितकाव्य है । व्यसन महामारी की तरह व्यक्ति व समाज को खोखला कर देते हैं । उनका त्याग समाज में प्रार्थिक व्यवस्था, लैंगिक सदाचार, व्यक्तिगत एवं कौटुम्बिक शान्ति और अहिंसात्मक वृत्तिको पनपाता है । शील का पालन जीवन का प्राभूषरण है । चारित्र को नष्ट होने से बचाना
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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