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________________ जनविद्या 5. डॉ.जयकुमार जैन-एम.ए., पीएच. डी. । प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, एस. डी. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर। इस अंक में प्रकाशित निबन्ध-भारतीय भाषाओं में सुदर्शनचरित विषयक साहित्य । सम्पर्क सूत्र-104, द्वारकापुरी, मुजफ्फरनगर, 251001, उ. प्र.। 6. डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री-एम. ए., साहित्यरत्न, पीएच. डी.। अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नीमच। इस अंक में प्रकाशित निबन्ध-सुदंसणचरिउ का काव्यात्मक वैभव । सम्पर्क सूत्र-243, शिक्षक निवास, नीमच, म. प्र. । 7. गं. श्रीरंजन सूरिदेव-एम. ए. (प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी), प्राचार्य (पालि, साहित्य, आयुर्वेद, पुराण एवं जनदर्शन), साहित्यरत्न, साहित्यालंकार, पीएच. डी.। इस अंक में प्रकाशित निबन्ध-सुदंसणचरिउ का छान्दस वैशिष्ट्य । सम्पर्क सूत्र-पी. एन. सिन्हा कॉलोनी, भिखना पहाड़ी, पटना, 800006, बिहार । भी धीयोगकुमार सिपई-शास्त्री, प्राचार्य (जनदर्शन)। प्रवक्ता, जनदर्शन विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, जयपुर। इस अंक में प्रकाशित निबन्ध-सुदंसणचरिउ प्रयोजन की दृष्टि से । सम्पर्क सूत्र-5/47, मालवीय नगर, जयपुर, 302017, राज. ।
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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