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________________ 96 जनविद्या उदयपुर द्वारा सम्पन्न हुमा । अपभ्रंश के सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉक्टर राजाराम जैन, पारा भी इस अवसर पर उपस्थित थे। इस शिविर में पाण्डुलिपि सम्पादन का प्रशिक्षण डॉ. छोटेलाल शर्मा, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, वनस्थली विद्यापीठ द्वारा तथा अपभ्रंश व्याकरण के सूत्रों का प्रशिक्षण डॉ. कमलचन्द सोगाणी, प्रोफेसर, दर्शन-विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा दिया गया। प्रशिक्षणार्थियों ने पाण्डुलिपि सम्पादन, उनका व्याकरणिक विश्लेषण प्रादि का अभ्यास किया। प्रशिक्षकों ने अपभ्रंश साहित्य में छिपे सांस्कृतिक मूल्यों एवं साहित्यिक सौन्दर्य की अोर प्रशिक्षणार्थियों का पर्याप्त ध्यान आकर्षित किया। ___ इस शिविर में भाग लेनेवाले सभी प्रशिक्षणार्थी स्नातकोत्तर डिग्री सहित थे,. कई पीएच. डी. की उपाधि से भी विभूषित थे। उपर्यक्त दोनों शिविरों में प्रतिदिन मध्याह्न में आमन्त्रित विद्वानों के भाषण भी प्रायोजित किये जाते थे। इस क्रम में डॉ. जिनेश्वरदास जैन, पिलानी; डॉ. नेमीचंद जैन, इन्दौर; डॉ. जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल, प्रागरा; डॉ. डी. सी. जैन, दिल्ली; डॉ. गोपीचन्द पाटनी, जयपुर; डॉ. सतीशचन्द्र गुप्ता, श्रीमहावीरजी; आदि के विभिन्न सामयिक विषयों पर गवेषणात्मक भाषणों से शिविरार्थी लाभान्वित हुए। प्रागत सभी विद्वानों ने दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा प्रायोजित शिविरों को प्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक बताया। शिविर में भाग लेनेवाले विद्वानों व शिविरार्थियों के मार्गव्यय, प्रावास, भोजन, अध्ययनार्थ सामग्री आदि का समस्त व्यय-भार क्षेत्र कमेटी ने वहन किया । नये प्रकाशन 1. बुद्धिरसायण प्रोणमचरितु 2. कातन्त्ररूपमाला 3. बोधकथामञ्जरी 4. मृत्यु जीवन का अन्त नहीं 5. पुराणसूक्तिकोष 6 वर्धमानचम्पू .
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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