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________________ जनविद्या 91 16. अामन्त्र्ये जसो होः 4/346 भिस्सुपोहिं . 4/347 मामन्त्र्ये जसो होः [(जसः)+(हो.)] मामन्त्र्ये (प्रामन्त्र्य) 7/1 जसः (जस्) 6/1 होः (हो) 1/1 (अपभ्रंश में) संबोधन में 'जस्' के स्थान पर 'हो' होता है। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों के सम्बोधन में जस् (प्रथमा बहु वचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हो' होता है । 17. भिस्सुपोहि 4/347 भिस्सुपोहिं [(भिस्) + (सुपोः) + (हिं)] [(भिस्)-(सुप्) 6/2] हिं (हिं) 1/1 (अपभ्रंश में) भिस् और सुप् के स्थान पर हिं' (होता है)। अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे भिस (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय) और सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हि' होता है। [उपर्युक्त दोनों सूत्रों के उदाहरण एक साथ दिये जा रहे हैं ।] 4/346 (देव+जस्)= (देव+हो)= हे देवहो (संबोधन बहुवचन) इसी प्रकार दूसरे शब्दों के रूप में होंगे । 4/347 (देव+भिस्)=(देव+हिं)+देवहिं (तृतीया बहुवचन) (देव+सुप्)=(देव+हिं)=देवहिं (सप्तमी बहुवचन) इसी प्रकार दूसरे शब्दों के रूप होंगे। 4/346 संबोधन बहुवचन 4/347तृतीया बहुवचन 4/347 सप्तमी बहुवचन हे देवहो देवहिं - देवहिं हरि (पू.)हे हरिहो हरिहिं हरिहिं गामणी (पु.)- हे गामणीहो गामणीहिं गामणीहिं साहु (पु.)- हे साहुहो साहुहिं साहुहिं सयंभू (पु.)- हे सयंमूहो सयंभूहि कमल (नपुं.)- हे कमलहो कमलहिं कमलाहिं वारि (नपुं)- हे वारिहो वारिहिं वारिहिं महु (नपुं.)- हे महुहो महुहिं महुहिं कहा (स्त्री.)- हे कहाहो कहाहिं कहाहिं मइ (स्त्री.)- हे मइहो माहिं माहिं लच्छी (स्त्री.)- हे लच्छीहो लच्छिहिं . लच्छीहिं घेणु (स्त्री.)- हे घेणुहो घेणुहिं घेणुहिं बहू (स्त्री.)- - हे बहुहो 18. स्त्रियां जस्-शसोरदोत् 4/348 स्त्रियां जस्-शसोरदोत [(स्त्रियाम्) + (जस्)-(शसोः)+ (उत्)+ (प्रोत्)] देव (पु.) . सयंभूहि बहुहिं. . बहुहिं
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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