SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनविद्या (283-85), नृत्य वाद्य संगीत (527-29) आदि रूढ़ियों का पालन किया गया है । ढोला मारू रा दूहा में भी इन कथानक रूढ़ियों को भलीभांति देखा जा सकता है । अपभ्रंश कथाकाव्यों के प्रभाव से रामचरित मानस भी बच नहीं सका । तुलसीदास ने लगता है उनका गहन अध्ययन किया था । अपभ्रंश की सारी कथानकरूढ़ियों का प्रयोग यहाँ पर भलीभांति हुआ है । आध्यात्मिक उद्देश्य की योजना भी इसमें जुड़ी हुई है । पौराणिक शैली का सुगठित विकास यहां द्रष्टव्य है । वैराग्य और शांत रस का सुन्दर वर्णन है । कडवक शैली का प्रयोग, अतकथानों का संयोजन तथा रावण, विभीषण, दशरथ, कौशल्या मादि के पूर्वभवों का वर्णन मिलता है । शकुन (1. 303, 2. 204), पशु-पक्षी (2. 235, 3. 24), वाद्यगणना (1. 344) आदि जैसी कथानकरूढ़ियों का भी परिपालन रामचरित मानस में हुआ है। इस प्रकार इस संक्षिप्त मालेख में हमने यह प्रस्तुत करने का प्रायास किया है कि जिन कथानकरूढ़ियों का प्रयोग जंबूसामिचरिउ में हुआ है उनका प्रयोग परवर्ती अपभ्रंश चरितकाव्य तथा प्राचीन हिन्दी महाकाव्यों में भी किया गया है। जंबूसामिचरिउ की कथानक-सृष्टि में अनेक रूपों का हाथ रहा है और उन्हीं रूपों ने हिन्दी के आदि-मध्यकालीन साहित्य को भी प्रभावित किया है।
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy