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________________ जनविद्या सम्बन्धित कथा इतनी लोकप्रिय सिद्ध हुई है कि पांचवी-छठी शताब्दी में हुए संघदास गणि से लगाकर वर्तमान बीसवीं शती तक के विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, बंगाली, गुजराती, राजस्थानी आदि में भिन्न-भिन्न प्रदेशों में व अवधियों में इनकी 100 से भी अधिक कृतियाँ रची गयीं। इन रचनामों की विभिन्न कालों में लिखी गयी सैकड़ों हस्तलिखित प्रतियाँ जैन एवं जैनेतर ग्रंथभण्डारों में उपलब्ध होती हैं । इन्हीं रचनात्रों में कहाकवि वीर द्वारा अपभ्रंश भाषा में रचित 'जम्बूसामिचरिउ' है । महाकवि वीर अपभ्रंश भाषा के महान् कवियों में से एक हैं। इनके द्वारा रचित यह महाकाव्य जम्बूस्वामी की जीवनी का एक सर्वांग सुन्दर अध्ययन प्रस्तुत करता है । काव्य की शैली अति सुन्दर एवं रुचिकर है । महाकवि वीर की यह रचना अन्य अपभ्रंश रचनाओं की तरह कई वर्षों तक अप्रकाशित रही । केवल हस्तलिखित प्रतियों में ही सीमितरूप से लिखी जाती रही । हिन्दी भाषा में इसका सर्वप्रथम परिचय पं परमानन्द जी द्वारा 'अनेकान्त' में प्रकाशित कराया गया है । डॉ. विमलप्रकाश जैन ने इस प्रतिरोचक अपभ्रंश रचना पर शोध कार्य कर पीएच. डी. डिग्री प्राप्त की एवं हिन्दी अनुवाद कर समाज को इससे परिचित करवाया। डॉ. जैन ने अपना शोध-कार्य 'जंबूसामिचरिउ' की जिन पांच हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया उनमें सबसे अधिक प्राचीन प्रति वि.सं. 1516 में लिखित श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी के अन्तर्गत आमेर शास्त्र भण्डार, वर्तमान में जैनविद्या संस्थान श्रीमहावीरजी के पांडुलिपि भण्डार की है। इसके अतिरिक्त तीन अन्य प्रतियाँ भी जयपुर के भण्डारों में सुरक्षित हैं । हमारे इस विशेषांक के चरित्र-नायक महाकवि वीर का जन्म मालवदेश के गुलखेड़ नामक ग्राम में जैनधर्मानुयायी लाडवर्ग गोत्र में हुआ था। इनके पिता देवदत्त स्वयं महाकवि थे । वीर के अनुसार तो उनके पिता का स्थान महाकवि स्वयंभू एवं पुष्पदंत के तत्काल बाद ही था। इन्होंने भी चार कृतियों-1. पद्धड़िया छंद में वरांगचरित 2. चच्चरियाशैली में शांतिनाथ का यशोगान (शांतिनाथरास) 3. सुन्दर काव्यशैली में सुद्धयवीरकथा एवं 4. अंबादेवीरास की रचना की थी। दुर्भाग्य से वर्तमान में इन चारों में से एक भी रचना उपलब्ध नहीं है । कवि की मां का नाम श्री संतुआ था एवं उनके चार पत्नियां थीं। प्रारम्भ में वीर संस्कृत काव्यरचना में निपुण थे परन्तु बाद में उनके पिता के मित्र तक्खड़ नाम के एक श्रेष्ठी एवं उसके अनुज भरत ने वीर को इस बात के लिए उत्साहित व प्रेरित किया कि वह अनेक प्राचीन कवियों द्वारा ग्रंथों में उल्लिखित जम्बूस्वामीचरित पर सर्वजनप्रिय अपभ्रंश भाषा में एक काव्य लिखें। तक्खड़ स्वयं विद्वान् थे एवं विद्वानों का आदर करते थे। 'जंबूसामिचरिउ' की प्रशस्ति के अनुसार इस कृति की रचना में करीब एक वर्ष का समय लगा एवं वि. सं. 1076 में रचना पूर्ण हुई । अन्य साक्ष्यों के आधार पर महाकवि वीर की इस रचना पर प्रसिद्ध महाकवि पुष्पदंत की रचनामों का गम्भीर एवं व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । इस रचना का भी गम्भीर व व्यापक प्रभाव अपभ्रंश के परवर्ती कवियों की कृतियों पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । वीर कवि विद्वान् होने के साथ-साथ एक योद्धा भी थे एवं उन्होंने अपने देश के लिए युद्ध में भी भाग लिया था।
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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