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________________ जनविद्या 17 ने मगधराज श्रेणिक को बताया कि वही विद्युन्माली यहां प्राया था । सातवें दिन वह मनुष्य रूप में पश्चिम केवली अवतीर्ण होगा। चौथी संधि में वीर कवि की संस्कृत में प्रशंसा निबद्ध है । इसी संधि में जम्बूस्वामी के जन्म का वर्णन है । सइत्तउ नगरी में संताप्पिउ वणिक् के पुत्र अरहदास की स्त्री ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न में जम्बूफल आदि शुभ वस्तुएं देखीं । समय पर जब पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसका नाम स्वप्नानुसार जंबूस्वामी रखा गया । जंबूस्वामी अत्यधिक सुन्दर थे, जिन्हें देखकर नगरवधुएं उन पर प्रासक्त हो जाती थीं। इसी प्रसंग में कवि ने वसन्तोत्सव, जलक्रीड़ा प्रादि का और जम्बू द्वारा मत्तगज को परास्त करने का वर्णन किया है । चरितकाव्य की पांचवीं से सातवीं संधि तक जम्बू के अनेक वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन है । महर्षि सुधर्मा स्वामी अपने पांच शिष्यों के साथ उपवन में आते हैं, जंबू उनके दर्शन कर नमस्कार करते हैं । मुनि से वे अपने पूर्व जन्मों का वृत्तान्त सुनकर विरक्त हो घर छोड़ना चाहते हैं, माता समझाती है और सागरदत्त आदि चार श्रेष्ठियों की कमलश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री नामक चारों कन्याओं से जम्बू का विवाह हो जाता है। यहीं आठवीं संधि समाप्त होती है। ___ नवीं संधि में जंबू के वैराग्य का वर्णन है। वह वैराग्य प्रतिपादक कथानक कहता है और उसकी पत्नियां वैराग्य विरोधी कथाएं कहती हैं। इस प्रकार आधी रात हो गई और जम्बू का मन विषयों से विरत रहा। इसी समय विद्युच्चर चोर वहां आता है । जम्बू की मां उससे कहती है कि यदि वह उसके बेटे को वैराग्य से विमुख कर दे तो वह जो चाहे ले जा सकता है । चोर जब जम्बू की माता से उसके वैराग्य की बात सुनता है तो वह प्रतिज्ञा करता है कि या तो उसे रागी बना दूंगा अन्यथा स्वयं वैरागी हो जाऊंगा। जम्बू की माता विद्युच्चर को अपना छोटा भाई कहकर जम्बू के पास ले जाती है ताकि वह उसे रागी बना सके। दसवीं संधि में जम्बू और विद्युच्चर एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अनेक व्याख्यान सुनाते हैं । जम्बू स्वामी वैराग्यप्रधान एवं विषय-भोग की निस्सारता प्रतिपादक पाख्यान कहते हैं और विद्युच्चर इसके विपरीत वैराग्य की निस्सारता दिखलानेवाले भोगप्रतिपादक आख्यान प्रस्तुत करते हैं किंतु अन्त में जम्बूस्वामी की विजय होती है। वे सुधर्मास्वामी से दीक्षा लेते हैं और उनकी चारों पत्नियां भी आर्यिकायें बन जाती हैं। जम्बूस्वामी ने तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया। ग्यारहवीं संधि में विद्युच्चर दशविध धर्म का पालन करते हुए तपस्या द्वारा सर्वार्थसिद्धि प्राप्त करते हैं । अन्त में कवि ने जम्बूचरिउ के पढ़ने से होनेवाले मंगल-लाभ का संकेत में वर्णन करते हुए काव्य की परिसमाप्ति की है। कथानक की समीक्षा यह चरितकाव्य अपभ्रन्श जैन चरितकाव्य की शैली में रचित एवं उन्हीं की रूढ़ियों पौर परम्परा में निबद्ध है । इसमें जम्बूस्वामी के पूर्व-जन्मों का वर्णन है। जम्बू पूर्वभव में
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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