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________________ महाकवि वीर और उनका जम्बूसामिचरिउ एक समीक्षात्मक अध्ययन - डॉ० जयकिशनप्रसाद खण्डेलवाल अपभ्रन्श के महाकवि वीर की सुप्रसिद्ध रचना 'जम्बूसा मिचरिउ' ग्यारहवीं शती की रचना है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति ग्रामेर शास्त्र भण्डार में है । कविवर वीर का रचनाकाल ग्यारहवीं शती का उत्तरार्ध है । ये ग्यारहवीं शती के प्रथम चरण में हुए । इनके पिता का नाम देवदत्त और माता का सन्तुना था । इनकी कई पत्नियां थीं। इनके पिता देवदत्त अच्छे कवि थे । उन्होंने पद्धड़ियाबन्ध में "वरांग चरित" नामक चरितकाव्य की रचना की थी । वीर कवि अपने पिता की गणना अपभ्रन्श के स्वयंभू और पुष्पदन्त के समकक्ष करते हैं। 2 काव्यरूढ़ियां कविवर वीर ने अपने काव्य के कथा-प्रवाह में अपभ्रन्श काव्य की सभी काव्य- रूढ़ियों का निर्वाह किया है । कथा के बीच-बीच में कवि ने संस्कृत में आत्मप्रशंसा भी की है । कवि ने कथानायक के जन्म-जन्मांतरों का वर्णन किया है । वर्तमान यश प्रताप और वैभव के मूल में कवि ने जम्बूस्वामी के पूर्वभवों का घटनाक्रम प्रस्तुत किया है। इस प्रकार कवि ने यह सिद्ध किया है कि 'मनुष्य' जो कुछ होता है वह अपनी प्रतीत घटनाओं का फल होता | नवीन धर्मानुष्ठानों से वह अपने भविष्य को सुधार सकता और वर्तमान को सन्तुलित रख सकता
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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