SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 142 खसहु म धम्महं भवियजण, जिणवरधम्मु जु सारु सावयजम्मु सु दुल्लहप्रो, लहइ ण वारंवार खसिय सुसंपइ तासु घरे, जिहि धरि सतु ण वहंतु ते घर जिणवर भासियए, दुह दालि भरंतु खूटी संपइ होइ ( वहा ) 13 जिणवर खूटउ णउ लहइ, संसारहं वुह को चलं हं को जींव वलिउ, वुह, धरइ, जइ खूटी श्राउ वि जाणि जिय, जम्मह गहियउ श्राइ । तेत्तिसको डिहि को वलिउ, जसु सरणागति जाइ जो जम्मु करह को सरणहं । परियणु खूटउ होइ रि सिरोमणि होइ ॥ 50 ॥ संसारहं भय जिउ पडिश्रो, कट्टण कवणु समत्थु जिणवर मेल्लि वि को मुणई, करु गहि लावइ पंथ संसारहो बलवंत यहो, श्रप्पउ कम्मगलत्थे सयल गय, पर जिउ गहेइ रक्खेइ हउ णवि भुंजिव मूढ़ नर, मइ हुआ जि होसइ के वि णर, सुह जो रक्खेइ कवणु घरेs । 11 48 11 । || 49 || जैनविद्या 11.51 | । 11 52 11 1 11 53 11 संसार प्रणंत समत्थ हुन, भुवि गिरि गिलण ण कोइ । ए ही सयलु गलछियहो, एम भणंतउ जोइ हसि हसि विलसउ सयल जगु, णवि छूटिङ इम जाणहु रे मूढ नर, मण गव्विय म 1 11 54 11 भुंजिउ जगु जाणि । भुजिहइ णियाणि 11 55 11 1 छुट्ट े इ कोइ ॥ 56 ।। || 57 || ण हउ वेससमानिय जाणि वुह, मो सम वेस ण मह सुरणर हरि हर सयल, महि भुजिवि हउ णर णारि सलक्खणिय, मो समु णारि मह सुर असुर वि भुजियए, को पुहमिहि श्रवर खमा सरीरहं जसु वसई, (तसु) 14 दुज्जण काई करेइ । सो सुहु भुजइ विविह परि, जिणवर एम भरणेइ होइ 1 मुक् ॥ 58 कोइ । गणेइ ।। 59 || 11 60 11
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy