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जनविधा
उत्तरपुराण, धन्यकुमारचरित्र, यशोघरचरित्र, सद्भाषितावाली, पद्मपुराण, व्रतकथाकोश, चौबीसी पाठ । जम्बूस्वामीचरित
नथमल बिलाला ने वि. सं. 1824-50 के मध्य उक्त काव्य की रचना की। इनके पिता का नाम शोभाचन्द्र था तथा गोत्र बिलाला। इनकी अन्य रचनाएँ हैं—सिद्धान्तसार दीपक, जिनगुणविलास, नागकुमार चरित, जीवन्धर चरित ।33 जम्बूस्वामीबेलि
17वीं शती के प्रतिभासम्पन्न विद्वान् भट्टारक वीरचन्द ने जम्बूस्वामीबेलि की रचना हिन्दी भाषा में की । ये भट्टारकीय परम्परा के बलात्कार गण की सूरत शाखा के भट्टारक देवेन्द्रकीति की परम्परा में लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य थे, व्याकरण तथा न्यायशास्त्र के प्रकाण्डवेत्ता थे 134 इनकी अन्य रचनाएँ हैं-वीरविलासफाग, जिनान्तर, सीमन्धरस्वामीगीत, सम्बोधसत्ताणु, नेमिनाथरास, चिन्तानिरोध कथा और बाहुवलिबेलि । जम्बूस्वामीबेलि की भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है। जम्बूस्वामीरास
कविवर भट्टारक त्रिभुवनकीति कृत जम्बूस्वामीरास भी रासशैली का महत्त्वपूर्ण काव्य है । त्रिभुवनकीर्ति भट्टारकीय परम्परा के रामसेनान्वय भट्टारक उदयसेन के शिष्य थे ।36 इनके जन्म, माता-पिता, अध्ययन, दीक्षा आदि के सन्दर्भ में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनका समय विक्रम की सतरहवीं शती है यतः इन्होंने वि. सं. 1625 में जम्बूस्वामीरास की रचना की थी। इनकी एक अन्य कृति जीवन्धररास भी उपलब्ध है।
जम्बूस्वामीरास एक प्रबन्धकाव्य है । इसमें दूहा, चउपाई आदि विभिन्न छन्दों का प्रयोग है। कथा का विभाजन सर्गों में नहीं हुआ है। कुल 677 छन्द हैं। एक उदाहरण द्रष्टव्य है जिसमें महारानी चेलना के गुण एवं लावण्य का सुन्दर चित्रण है
ते परि राणी चेलना कही, सती सिरोमणि जाण सही। समकित भूक्षउ तास सरीर, धर्म ध्यान परि मनधीर ।। हंसगति चालि चमकती, रूपी रंभा जारणउ सती । मस्तक वेणी सोहि सार, कंठ सोहिए काडल हार ॥ कांने कुण्डल रत्ने जड्या, चरणे नेउर सोवन धड्या । मधुर वयण बोलि सुविचार, अंग प्रनोपम दीसी सार ॥
-जम्बूस्वामीरास 19-21 बबूस्वामीरास
जम्बूस्वामीरास नाम की एक अन्य कृति भट्टारक भुवनकीति की उपलब्ध है। ये सकलकीति भट्टारक के प्रधान शिष्य थे । सकलकीति के पश्चात् उनकी गद्दी मुवनकीर्ति को ही प्राप्त हुई थी।38 डॉ. शास्त्री ने विभिन्न प्रमाणों के आधार पर इनका समय वि. सं. की