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________________ 122 ___ जनविता भट्टारक सकलकीति बहुश्रुत विद्वान् थे। उन्होंने अनेक कृतियों का प्रणयन किया जिनका विवरण डॉ. शास्त्री ने 'तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्य परम्परा' के तीसरे भाग में दिया है। जम्बूस्वामीचरित इसके लेखक अचलगच्छीय जयशेखरसूरि हैं। इनका समय 1381 ई. है। इसके 6 सर्गों में 726 श्लोक हैं। गुणपाल की कथानों में कुछ परिवर्तन किया गया है। भाषा हृदयग्राही संस्कृत है। जम्बूस्वामीचरित पूर्वोक्त भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य और लघु भ्राता ब्रह्म जिनदास ने भी जम्बूस्वामी चरित काव्य लिखा। ये बलात्कारगण की ईडर शाखा के संस्थापक के लघु भ्राता होने के कारण अत्यधिक सम्मानपूर्ण कवि थे। माता का नाम शोभा और पिता का नाम कर्मसिंह था। इनके समयादि के सन्दर्भ में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं होती। डॉ. नेमीचन्द शास्त्री ने विभिन्न तथ्यों के आधार पर इनका समय 1450-1525 वि.सं. माना है ।25 इनकी रचनामों से ज्ञात होता है कि मनोहर, मल्लिदास, गुणदास, नेमिदास इनके शिष्य थे। जम्बूस्वामीचरित की रचना में उन्हें अपने एक शिष्य ब्रह्मचारी धर्मदास के मित्र कवि महोदय से सहायता प्राप्त हुई थी।28 ब्रह्म जिनदास का संस्कृत, हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी पर समान अधिकार था। संस्कृत में उन्होंने जम्बूस्वामीचरित के अतिरिक्त रामचरित, हरिवंशपुराण तथा अनेक पूजायें लिखीं। हिन्दी और राजस्थानी के लगभग 50 ग्रन्थों का परिचय डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ने दिया है। 'महाकवि ब्रह्म जिनदास' नामक डॉ. रांवका के शोध-प्रबन्ध में जिनदास की सत्तर हिन्दी कृतियों का परिचय दिया गया है28 जिनमें एक जम्बूस्वामी रास भी है। . ____ जम्बूस्वामीचरित में 11 सर्ग हैं। वीर के जम्बूसामिचरिउ से यह अत्यधिक प्रभावित हैं । शृंगार और वीर रस का सुन्दर परिपाक यहां हुआ है। जगह-जगह सुभाषितों का प्रयोग हुआ है। जम्बूस्वामी रास उक्त ब्रह्म जिनदास की हिन्दी कृति जम्बूस्वामी रास है जिसमें 'रास' शैली में जम्बूकुमार का चरित्र वर्णित है । इसमें 1005 छन्द हैं। एक उदाहरण द्रष्टव्य है जम्बूकुमार सोहमणोए सिणागारियो प्रतिभामणो । गज चडिय परणेवा ते चालीयो ए सही ए ॥ जम्बूस्वामी विवाहला ___ हीरानन्द सूरि ने वि. सं. 1495 में उक्त काव्य की रचना की । हीरानन्द सूरि पिप्पलगच्छीय श्री वीरप्रभ सूरि के शिष्य थे । 'जैन गुर्जरकवियों' के तीसरे भाग में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है । हीरानन्द सूरि की अन्य हिन्दी रचनाएँ निम्न हैं
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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