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________________ जनविद्या गुणसम्पूर्ण । जैनधर्मविषयतत्परान् । गुण प्रियंवद । हरो। तस्य प्रथमपुत्र । जिनपूजा पुरन्दर। सा० सतन । भ्राता परोपकारक । सा० बलिराज । तस्य भ्राता। जीवदयापर। सा० पदम । . भ्राता अनेकगुण सम्पूर्ण । विद्या विषयतत्पर। सा. नल्हा । एतं ॥ जैन धर्मापका""""। इसके पुट्टे पर रंगीन कागज के बेलबूटे काटकर चिपककर कलापूर्ण बनाया गया है। इसी पुढे पर दूदू ग्राम में संवत् 1604 भादवा वदी से अभिषेक करने की पारी (अहसेव ना वारा) के लिए श्रावकों के नाम तिथिवार दिये हैं। इससे ज्ञात होता है कि उस समय भी मंदिरों में अभिषेक की पारी 4. वेष्टन संख्या 70 । पत्रसंख्या 217 । पूर्ण । श्लोक संख्या 8000 । प्राकार32X113लिपिसमय-सं० 1662 । . विशेष—पत्रसंख्या 216 की अंतिम तीन पंक्तियों से मूलग्रन्थ की लिपि प्रशस्ति प्रारम्भ होती है जिसकी प्रथम तीन लाइनों को काटकर ऊपर लाल स्याही के संवत् 1662 के 62 पर काली स्याही फेरकर 93 बनाया गया है एवं आगे भी संशोधन किया गया है। प्रशस्ति की पहली पंक्ति सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखने पर इस प्रकार स्पष्टरूप से पढ़ी जाती है-"संवत् 1662 वर्षे श्री विक्रमादित्यराज्ये भादवां वदी पांचे बुध दिने । श्री पातिसाह जहांगीर"...........।" .. ... ऐसा ज्ञात होता है कि कोई व्यक्ति इस प्रशस्ति में ही काट फांस करके इसे संवत् 1693 की बनाना चाहता था किन्तु उसने तीन पंक्ति. संशोधन के पश्चात् अपना इरादा , छोड़ दिया और सं० 1693 की अलग प्रशस्ति लिखकर इस ग्रन्थ में संलग्न कर दी। प्रथम प्रशस्ति का शेष अंश इस प्रकार है-सा. नरसिंघ. तद्भार्या। द्वौ प्रथमभार्याचाउ द्वितीय : भाउ । नरसिंघ प्रथम पुत्र सा०: गुणिया भार्या विल्हो तत्पुत्राः चत्वारः । प्रथमपुत्रदेवगुरुशास्त्रभक्त साई चरपति । भार्या ठकुरी। तत्पुत्र सा० ज्ञानचन्द ॥ गुणिया *. द्वितीय पुत्र सा० मोलू। भार्याः। चंदणी। तृतीय पुत्र सा० दिउचन्द । चतुर्थ पुत्र सा० दुलू । सा० नरसिंघ द्वितीय पुत्र सा० तोल्हा । भार्या जिणो। तत्पुत्रौ द्वौ । प्रथम पुत्र सा० रावण । तद्भार्या वीध्धो। तत्पुत्र सा० विमलू । तोल्हा द्वितीय पुत्र सा० भोला तद्भार्या दीपो। तत्पुत्र सा० चोचा। सा० नरसिंघ पुत्र तृतीय । सा० हेमातद्भार्या डलो। सा० नरसिंघ चतुर्थ पुत्र सा० तिहुणा। तद्भार्या जीवो। तत्पुत्र : सा० ऊदा । सा० नरसिंघ पंचम पुत्र तेजू भार्या सोभी। सा. नरसिंघ षष्टम पुत्र सा० वस्तू । भा० कुम्वरी । सा० सीधर द्वितीय पुत्र सा० देईदास । भार्या मल्हो । ,तत्पुत्र सा० छाजू । भा० पल्हो । सा० सीधर तृतीय पुत्र सा० लोलू । तद्भार्या जालपही तत्पुत्रा 2 प्रथमपुत्र सा० ढूंढा द्वितीय गूजर । भार्या दोदाही। एतेषां मध्ये साहगुणिया पंचमी उद्धरण धीर दीवानदीपक । परोपकारकान् । सा० गुणिया तत्पुत्र सा० नरपतिकेन इदं आदिपुराण । ग्रन्थं ।। आत्मकर्मक्षयनिमित्तं लिखापितं ॥ ब्रह्म सारू पठनार्थेन दत्तं ।।शुभम्।।.....
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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