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महाकवि पुष्पदंत
और उनकी रसाभिव्यक्ति
-डॉ. प्रेमचंद रांवका
अपभ्रश काव्यों में हमें भाषा की दो धाराएँ बहती हुई दिखाई देती हैं । एक तो प्राचीन संस्कृत, प्राकृत परिपाटी को लिये साहित्यिक भाषा है जिसमें पदयोजना, अलंकार, शैली प्रादि अलंकृत शैली के अनुसार हैं। दूसरी धारा अपेक्षाकृत अधिक उन्मुक्त और स्वच्छन्द है जिसमें भाषा का सर्वसाधारण की बोलचाल का रूप मिलता है । कुछ कवियों ने एक धारा को अपनाया तो कुछ ने दूसरी को पसन्द किया। "पुष्पदंत" जैसे प्रतिभाशाली कवियों की रचनाओं में दोनों धाराएँ मिलती हैं ।
"रसात्मक वाक्यं काव्यम्" रस ही काव्य का प्रमुख लक्षण या गुण है । काव्य-रस से सहृदयों को जिस आनंद की अनुभूति होती है वह लौकिक पदार्थों से प्राप्त आनंद से उच्चकोटि का होता है। इसलिए उसे "ब्रह्मानंद सहोदर" कहा गया है। आनंद जीवन की मूल्यवान् निधि है । "रसो वै सः" कहकर स्वयं ब्रह्म को प्रानन्दमय माना गया है । इस प्रकार काव्य-रस आनंद प्रदान करनेवाला होने से महत्त्वपूर्ण है।
___ भरतमुनि के अनुसार “विभावानुभावसंचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः” अर्थात् स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारीभावों के संयोग से रस बनता है । रस प्रक्रिया सहृदय को उसके हृदय में विद्यमान स्थायी भाव को ही रसरूप में अनुभव कराती है । स्थायी