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नविद्या
के कारण वे उसी उज्जैन राजकुल में भाई-बहन के रूप में जन्म लेते हैं। धार्मिक जीवन व्यतीत करके वे फिर क्षुल्लक और क्षुल्लिका हो जाते हैं। फिर यौधेय देश की राजधानी राजपुर में वे चण्डमारीदेवी के सम्मुख राजा मारिदत्त द्वारा नरबलि हेतु उपस्थित किये जाते हैं । क्षुल्लक-क्षुल्लिका के साथ वार्तालाप से राजा की दृष्टि बदल जाती है। हिंसा पर अहिंसा की विजय होती है। इसी कथानक का विकास और विस्तार इन सब कथाओं में
हुआ है।
पुष्पदंत ने इस कथा को अधिक नाटकीय बनाने की दृष्टि से काव्य का प्रारम्भ यौधेय देश तथा उसके राजा मारिदत्त से किया है जो भैरवानन्द नामक कौलाचार्य के प्रभाव से चण्डमारी देवी के मंदिर में बलि के निमित्त नर-मिथुन की खोज में हैं। इस खोज में क्षुल्लक युगल पकड़े और मन्दिर में लाये जाते हैं। क्षुल्लक के संबोधन से राजा विचार में पड़ जाता है और उनका वृत्तान्त जानना चाहता है। तब क्षुल्लक अवंति के राजा यशोधर, उसकी माता तथा उनके भवांतरों का वर्णन करता है। अनेक जन्मों के पश्चात् पुनः यशोधर और चंद्रमती का अपने पुत्र के यहां अभयरुचि तथा अभयमति के नाम से भाई-बहिन के रूप में जन्म होता है। वे ही क्षुल्लक और क्षुल्लिका हैं। इसे सुनकर राजा मारिदत्त को पश्चात्ताप होता है । अंत में मारिदत्त दीक्षा ले लेते हैं, भैरवानंद अनशन व्रत धारण करता है और चण्डमारी देवी सम्यक्त्व को प्राप्त हो जाती है। ये सब स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
प्रक्षेपांश
इस काव्य की एक विशेषता यह है कि रचना के लगभग तीन शताब्दी बाद कृष्ण-पुत्र गन्धर्व कवि ने पट्टन निवासी बीसल साहू के आग्रह पर इस काव्य में भैरवानंद के राजकुल में प्रवेश, यशोधर के विवाह तथा सब पात्रों के भव-भ्रमण के वर्णन जोड़ दिये । गन्धर्व ने यह रचना वत्सराज द्वारा लिखित वस्तुबन्ध काव्य के आधार पर वि. सं. 1365 में सम्पन्न की । गन्धर्व ने तीन शताब्दी के बाद जो अंश जोड़े उनका प्रत्येक स्थान पर अत्यन्त प्रामाणिकता से उल्लेख किया है। प्रथम संधि के आठवें कडवक की पन्द्रहवीं पंक्ति में कहा गया है
गन्धब्बु भणइ मई कियउ एउ। णिवजोईसहो संजोयमेउ । घत्ता-प्रगइ कइराउ पुष्फयंतु, सरसइणिलउ ।
देवियहि सरूउ वणइ, कइयणकुलतिलउ ।
1.8.15
अर्थात्-गंधर्व का कथन है कि मैंने ही राजा और योगी के संयोग का वर्णन किया है । इसके आगे सरस्वती-निलय तथा कविकुलतिलक कविराज पुष्पदंत देवी के स्वरूप का वर्णन करते हैं। यह प्रक्षेपांश पहली संधि के पांचवें से लेकर आठवें कड़वक तक है।