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________________ जैनविद्या 19 करुणाभाव से अनाथों, दीनों और निर्धनों को भोजन, वस्त्र, देह के प्राभूषण, गायें और भैंसें, भूमि और भवनरूपी धन दिया जा सकता है । ऐसा प्रतीत होता है कि पुष्पदंत की मानव मूल्यों में अटूट श्रद्धा है । एक अवसर पर नागकुमार ने नन्दनवन में श्रुतिधर आचार्य के दर्शन किये और उनसे धर्म का स्वरूप पूछा 11 धर्म का जो स्वरूप समझाया गया वह सार्वलौकिक है । आचार्य ने जिन मानव मूल्यों को उसमें समेटा है वे सम्प्रदायातीत हैं और बहुत ही आधुनिक प्रतीत होते हैं । प्राचार्य कहते हैं— पुच्छिउ धम्मु जइ वज्जरह, जो सयलहं जीवहं दय करह । जो प्रलियपयंपणु परिहरह, जो सच्चसउच्च रद्द करइ । पेसुण्ड कक्कसवयरणसिहि, ताडणबंधरणविद्दवरणविहि । जो ग पउंजइ सयभीरुयँहँ दीरणारगाहहं पसरियकिवहं । जो देइ महुरु करुणावयणु, परदव्वे रंग पेरद्द कह व मणु । वज्जइ श्रवत्तु गियपियरवणु, जो ग धिवइ परकलत्ते गयणु । जो परहण तिसमाणु गराइ, जो गुणवंतउ भत्तिए युगइ । एयहं धम्महो अंगई जो पालइ विहंग । सो जि धम्मु सिरि तुगई प्रण्णु कि धम्म हो सिंगई ।। 6.10.8 - 14 "जो समस्त जीवों पर दया करता है, झूठ वचन नहीं कहता, सत्य और शौच में रुचि रखता है, चुगलखोरी, अग्नि के समान कर्कश वचन, ताड़न, बन्धन व अन्य प्रकार की पीड़ाविधि का प्रयोग नहीं करता, क्षीण, भीरु, दीन और अनाथों पर कृपा करता है, मधुर करुणापूर्ण वचन बोलता है, दूसरे के धन पर कभी मन नहीं चलाता, बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करता, अपनी प्रिय पत्नी से ही रमण करता है, परायी स्त्री पर दृष्टि नहीं चलाता है, पराये धन को तृरण के समान गिनता है और गुणवानों की भक्ति सहित स्तुति करता है, जो अभंगरूप से इन धर्मों के अंगों का पालन करता है यही धर्म का स्वरूप है और क्या धर्म के सिर पर कोई ऊँचे सींग लगे रहते हैं ? " उपर्युक्त मूल्यों के अतिरिक्त पुष्पदंत ने जिन दो मूल्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया है वे हैं - ( 1 ) ईर्ष्या / जलन का अभाव, ( 2 ) अन्याय का प्रतिकार । ( 1 ) पुष्पदंत ने ईर्ष्या के प्रभाव को जीवन-मूल्य स्वीकार किया है । ईर्ष्या एक ऐसा संवेग है जो दूसरों की बढ़ोतरी को देखकर मन में क्लेश उत्पन्न कर देता है । अपने विकास के लिए इस पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है । गायकुमारचरित में ऐसे प्रसंग उपस्थित होते हैं जहां ईर्ष्या वश कठिनाई उपस्थित होती है। एक प्रसंग में ईर्ष्या जीत ली जाती है, दूसरे प्रसंग में ईर्ष्या बनी रहती है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक आधार चाहिये । पुष्पदंत ने बड़ी खूबी के साथ ईर्ष्या के प्रसंगों की चर्चा की है
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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