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________________ साहित्य-समीक्षा जैनदर्शन का व्यावहारिक पक्ष अनेकान्तवाद : लेखक - डॉ० भागचन्द जैन 'भागेन्दु' । प्रकाशक - वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, वाराणसी । पृष्ठ संख्या-231 साइज 18" × 22" / 8। मूल्य - 1.50 रुपये । प्रथम संस्करण । 1. 2. 3. प्रस्तुत कृति जैनदर्शन के मूलभूत सिद्धान्त 'अनेकान्त' की परिचयात्मक लघु पुस्तिका है। विद्वान् लेखक ने प्रत्यन्त सरल सहज शब्दों में अनेकान्त व स्याद्वाद को - समझाया है । पुस्तिका उपयोगी व पठनीय है । पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और क्रमबद्ध भी : लेखक- बंशीधर शास्त्री, व्याकरणाचार्य । प्रकाशक - वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी । पृष्ठ संख्या - 27 । साइज - 18" × 22/8। मूल्य - 1.50 रुपये । प्रथम संस्करण । प्रस्तुत कृति में लेखक ने पुष्ट प्रमाणों द्वारा 'पर्यायें क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी' यह सिद्ध करने का प्रयास किया है । पुस्तक उपादेय है । दोनों ही पुस्तिकायें मन्दिरों, पुस्तकालयों एवं जिज्ञासु पाठकों द्वारा संग्रहणीय हैं । सज्ज्ञान- चन्द्रिका (सम्यग्ज्ञान - चिन्तामणि ) : लेखक - डॉ० पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य, सागर । प्रकाशक - वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट प्रकाशन, वाराणसी । प्रथम - संस्करण, 1985 । पृष्ठ संख्या – 148+32=180 1 मुद्रक - नया संसार प्रेस, भर्दनी, वाराणसी-1। आकार 18 X 22 / 4 मूल्य 15 रु. 2 पं० ( डॉ० ) पन्नालाल समाज के उन कतिपय शीर्षस्थ विद्वानों में से एक हैं जो न केवल संस्कृत साहित्य के अपितु धर्मतत्त्व के भी मर्मज्ञ विद्वान् हैं । जैन साहित्य क्षेत्र में उनकी कर्मठता अनुकरणीय है । वे निरन्तर मां सरस्वती की सेवा में रत रहते हैं । उनकी इस लग्नशीलता ने समाज को कई पुराणों के हिन्दी अनुवाद एवं मौलिक रचनाएं प्रदान की हैं। आलोच्य ग्रंथ उनकी स्वयं की मौलिक रचनाओं में से एक है । प्रस्तुत कृति उनकी पूर्व संकल्पित रत्नत्रयी नामक रचना का द्वितीय खण्ड है । प्रथम खण्ड " सम्यक्त्व - चिन्तामरिण" के नाम से प्रकाश में आ चुका है जिसमें मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी सम्यग्दर्शन का सांगोपांग विस्तृत विवेचन किया गया है । पुस्तक का महत्त्व एवं उपादेयता इसी से प्रकट है कि वह श्री दिगम्बर जैन प्रतिशय क्षेत्र, श्रीमहावीरजी के जैन विद्या संस्थान द्वारा प्रदेय सन् 1983 के महावीर पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुकी है ।
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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