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________________ मुनि कनककोति नेमीश्वर की जयमाला घातियाकर्मरूपी मेघों को छिन्न-भिन्न करनेवाले, संसार के दुःखों को नष्ट करनेवाले, भव्यजनरूपी कमलों के लिए सूर्य के समान, शिवदेवी के लाल. नेत्रों को आनन्द देनेवाले हे नेमिजिनेश्वरदेव ! आपकी जय हो ॥1॥ जिनोत्तम नेमिकुमार को नमस्कार हो, जिसके चरण सौ इन्द्रों द्वारा वंदित हैं उसको नमस्कार हो, जिसका शरीर मरकतमरिण के समान श्याम रंगवाला है उसको नमस्कार हो, एक हजार पाठ सुलक्षणों से युक्त प्रभु को नमस्कार हो ॥2॥ पूर्व संचित काम के नष्टकर्ता को नमस्कार हो, श्रेष्ठ यादवकुलरूपी आकाश के चन्द्रमा को नमस्कार हो, दशलक्षण-धर्म का प्रकाश करनेवाले को नमस्कार हो, दस प्रकार के संयमों के संयमस्वामी को नमस्कार हो ।।3।। ___ दस धनुषप्रमाण शरीरधारी को नमस्कार हो, बाईस परीषहों के सहनकर्ता को नमस्कार हो, दस सदृश प्रमाणों का कथन करनेवाले को नमस्कार हो, पन्द्रह प्रमादों से रहित (मुक्त) को नमस्कार हो ।।4।। जिन्होंने अठारह दोषों का परित्याग कर दिया है उनको नमस्कार हो, पच्चीस भावनाओं के भानेवाले को नमस्कार हो, द्रव्यस्वभाव का परिज्ञान करनेवाले को नमस्कार हो, पंचम चरण (यथाख्यात चारित्र) के परिज्ञानी को नमस्कार हो ।।5।। जीवसमास को जाननेवाले को नमस्कार हो, दुराशाओं के जाल को छिन्न-भिन्न करनेवाले को नमस्कार हो, स्त्रियों को परितोष प्रदान करने हेतु प्रसिद्ध प्रभु को नमस्कार हो, तीन दण्ड और तीन शल्यों का परित्याग करनेवाले को नमस्कार हो ।।6।।
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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