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________________ महाकवि पुष्पदंत का दार्शनिक ऊहापोह - डॉ० भागचंद जैन "भास्कर" महाकवि पुष्पदंत अपभ्रंश के जाने-माने शीर्षस्थ साहित्यकार हैं। उनके पिता का नाम केशव भट्ट तथा माता का नाम मुग्धा था। वे काश्यप गौत्री ब्राह्मण थे। जीवन के प्रथम काल में उनका परिवार शवधर्मावलम्बी था पर बाद में किसी जैनाचार्य के उपदेश से उन्होंने जैनधर्म धारण कर लिया था। उनका वर्ण श्याम था, शरीर कृश था, सारा परिवार जिनभक्त और सात्विक था। कवि ने स्वयं को सर्वत्र अभिमानमेरु कहा है पर वे विनम्र और स्मितवदन भी थे। उनके विवाह आदि के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता। अधिक संभव यही है कि वे एकाकी रहे हों। इसलिए उन्हें धन की भी कभी चाह नहीं रही। उनकी निर्द्वन्द्वता और स्वाभिमानवृत्ति के पीछे कदाचित् यह भी एक कारण था। वे मृत्यु का आलिंगन कर सकते थे पर किसी की भृकुटि सहन करने को तैयार नहीं थे। ___मालवनरेश हर्षदेव ने 972 ई० में मान्यखेट का विध्वंस कर डाला जिसका उल्लेख महाकवि ने महापुराण में किया है। इस घटना से कवि का समय आसानी से निश्चित किया जा सकता है। मान्यखेट की विनाशलीला को उन्होंने स्वयं देखा था इसलिए इतना तो निश्चित है कि वे सन् 972 तक जीवित थे। इसके बाद की उनकी जीवन-यात्रा अज्ञात है । अमात्य भरत और उनका पुत्र नन्न दिगम्बर जैन आम्नाय के पोषक थे। दोनों ने पुष्पदंत का भरपूर सम्मान किया । धर्मवत्सलता और गुरगर्मिता ने कवि को जोड़े रखा अन्त तक । इसलिए कवि ने मात्र कृतज्ञता ही स्पष्ट शब्दों में प्रकट नहीं की बल्कि उनके व्यक्तित्व
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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