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________________ जैनविद्या आम्रवृक्ष कंटकित हो गया, मधुलक्ष्मी ने आलिंगन कर उसे ग्रहण कर लिया। शीघ्र चंपकवृक्ष अंकुरों से अंचित हो उठा, मानो कामुक हर्ष से रोमांचित हो गया। अशोक वृक्ष कुछ-कुछ पल्लवित हो उठा मानो ब्रह्मारूपी चित्रकार ने उसकी रचना की हो, शीघ्र ही मंदार की शाखा पल्लवित हो गयी मानो चलदल (पीपल) को मधु ने नवा दिया हो । शीघ्र नमेरू (पुन्नाग वृक्ष) कलियों से लद गया और मतवाले चकोर एवं कीड़ों की ध्वनियों से गूंज उठा। शीघ्र ही कानन में टेसूवृक्ष खिल गया और पथिकों के लिए विरहाग्नि जलने लगी। प्रसिद्ध मनोविज्ञान वेत्ता "युंग" ने आदि बिम्ब (Archetypical image) की भी चर्चा की है । इसका सम्बन्ध व्यक्ति के आनुवंशिक संस्कारों से रहता है। इसी प्रकार काव्यबिम्ब को परंपरित रूप-विधान, सामयिक रूप-विधान, नव्य रूप-विधान आदि कोटियों में वर्गीकृत किया गया है । कुछ आलोचकों ने सांस्कृतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, भावात्मक, गुणात्मक आदि दृष्टिकोणों से भी इसका वर्गीकरण किया है। वस्तुतः यह विषय एक स्वतन्त्र शोधप्रबन्ध की अपेक्षा रखता है। महापुराण का कवि एक सामान्य रचनाकार मात्र नहीं है अपितु है ऋतम्भरी प्रज्ञा का प्रकाशपुञ्ज, उद्गीय-गायक और ज्योतिर्मय जीवन का द्रष्टास्रष्टा ऋषि । वह कुरूपता, विद्रूपता एवं विनाश के भीतर भी सौन्दर्य, आस्था एवं मंगल का दर्शन करता है । उसकी एकमात्र कामना है : - इह दिव्वहु कव्वहु तरणउ फलउ लहु जिगणाहु पयच्छउ । सिरिभरहहु अरूहहु जहिं गमणु पुप्फयंतु तहिं गच्छउ । इस दिव्य काव्य-सृजन का फल जिन-प्रभु यही दें कि जहाँ चक्रवर्ती भरत एवं भगवान् अरहन्त का गमन हुआ है, वहीं मेरा गमन हो । 1. Ezra Pound : Literary Essays, Page 17 2. C.D. Lewis : The Poetic Image, Page 19 3. डॉ० नगेन्द्र : काव्य बिम्ब, पृष्ठ 45 4. ग्रीवाभंगाभिरागं मुहुरनुपतति स्पंदने बदृष्टिः पश्चार्थेन प्रविष्टः शरपतनभयाद्भूयसा पूर्वकायम् दौरधविलीढः श्रमविकृतमुखं भ्रशिभिः कीर्ण वा पश्योद्गप्लुतन्वा द्विषति बहुतरं स्तोकमुखें प्रयाति । 5. डॉ० नगेन्द्र : काव्य-बिम्ब, पृष्ठ 42-43 6. पुष्पदन्त : महापुराण, प्रस्तावना अंश, पृष्ठ 41, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन ।
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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