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________________ 38 जनविद्या 1.2.9 महाप्राण ध्वनियों में से केवल महाप्राणत्व का रह जाना ख - ह मुख सम्मुख संमुह दीर्घ घ ध - - ह ह दीहर, दीह महु पयोहर मधु पयोधर दधि अवधीरिय दहि अवहेरिय भ - ह प्रभु पह अभिमान शोभित विच्छोभ अहिमाण सोहिय विच्छोह 1.2.10 व्यंजन-गुच्छ तथा व्यंजन-संयोग 1.2.10.1 द्वित्व की प्रवृत्ति द्वित्व की यह प्रवृत्ति पालि काल से ही प्रारंभ हो गई थी। दो भिन्न ध्वनियों के स्थान पर द्वित्व उब्बद्ध रत्ति - उद्बद्ध रक्ति शत्रु भक्ति सत्तु भत्ति रेफ के साथ ध्वनि के स्थान पर द्वित्व दुर्गम - दुग्गम निर्जन णिज्जण चक्रवाल - चक्कवाल 1.2.10.2 दो भिन्न ध्वनियों के स्थान पर तीसरी ध्वनि स्तेन थेरण (नोट-सामान्यत: स्त के स्थान पर "त्थ" भी मिलता है, जैसे - हस्त - हत्थ, हस्ति - हत्थि, प्रशस्त - पसत्थु) ख स्क स्कंध - ETET
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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