SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनविद्या 88. ( क ) व्यौहारु 89. (ख) एक 90. ( क ) समौ भान लीनु 91. (क) दग्धै कर्म्म पयारु 92. (क) जाप जपै बहुत तवं 93. (क) तउ ग 94. (क) (ख) कर्म्म 95. ( ख ) होई 96. (ख) एक 97. ( क ) अपा 98. ( क ) मूनिउ 99. ( क ) चो गै 100. (क) पान्यौ देइ (ख) पाणिउ देई 101. (ख) अप्पां 102. ( क ) मुनि 103. ( क ) तुह 104. ( क ) अनहंकहि (ख) अहंकरि 105. (क) प्रहारु 106. ( क ) समाधी 107. (क) जाणिए (ख) ज़ाणियई 108. ( क ) जो 109. ( ख ) जिरण सासरिण 110. (ख) अप्प 111. (क) (ख) सील 112. (ख) गुण 113. (क) दर्शनु न्यानु 114. (क) वतु 115. (ख) संजम 116. ( क ) आप्पा पहु निर्वाणु 117. संख्या 22 का छंद ( क ) (ख) समई झारणा रहहिं (ख). धग धग कम्मपयालु ( ख ) तवई 118. ( ख ) झावई पाठ भेद ऊपर दिये जा चुके हैं । 119. (ख) साच्चउ 120. ( ख ) सम्मकु बोधइ 121. (ख) कणु 122. ( ख ) गहिउ पयालु (ख) ते पावहि रिणवाणु प्रति में संख्या 23 के छंद के पश्चात् है जिसके 125
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy