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________________ जैनविद्या - गुरु जिणवर गुरु सिद्ध-सिउ,159 गुरु रयणतय1 6०-सार । सो दरिसावइ अप्प1 61 - परु, भवजल पावइ182 पार ॥ पाणंदा रे ! भवजल पावइ पार ॥35॥ ___पाहण18 पूजि164 म सिरु185 धुणहु,166 तीरथ काई भमेउ187 । देव : सचेयणु सच्च , गुरु, · जो दरिसावइ भेउ168 ॥ पाणंदा रे! जो दरिसावइ भेउ ॥36॥ सुखाइ सुणावइ अणुभवइ, . सो. रणरु सिवपुरि जाइ। ....कामहणण. भव-रिणदलण, भवियण हियइ समाइ18 ॥ ..' प्राणंदा रे ! भवियरण हियइ समाइ ।।37॥ सुणतहं . पाणंदु उल्लसइ, मत्थयेणाणतिलगु। . मुकुटमणि सिरि सोहयइ, साहु गुरु · पालहु जोगु17 ॥ पाणंदा रे ! साहु गुरु पालहु जोगु ॥38॥ समरसभा171 रंगिया, अप्पा देखइ सोइ17 | अप्पउ जाणइ अणुभवइ,173 करइ174 णिरालंब होइ17 ॥ पाणंदा रे ! करइ णिरालंब होइ ॥39॥ सुणतह हियडा करमरइ, मत्थये उपजह सोगु । ... प्रणखु बढइ बहु - हिय रे, · मिच्छादिट्ठी. जोगु1१० ॥ . पाणंदा रे ! मिच्छादिट्ठी जोगु ॥400 हिंडोला छंदि गाइयउ, आणंदतिलकु जु गाउ । • महाणंदि - दिक्खालियउ, अब हउं सिवपुरि जाउ17 ॥ पाणंदा रे ! अब हउं सिवपुरि जाउ ॥41॥ बलि. किज्जउ.. गुरु आपणइ, फेडिय मन-संदेहु । विषु तेहिं विणु वाटिहिं, जिण दरिसायउ मेहु178 ॥ आणंदा रे ! जिण दरिसायउ मेहु ॥42॥ सदगुरु-वाणी .. जय हवउ, . भणइ महाणंदिदेव । सिवपुरि जाये जारिणयइ, करइ चिदानंदिसेव17 ॥ . . आणंदा रे ! करइ चिदानंदिसेव ॥43॥ समाप्त180
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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