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________________ 118 जनविद्या परमाणंद 126 - सरोवरह,127 जे मुणि करई पवेसु128 । अमिय महारसु जइ पिबइ,129 गुरु-सामिहि130 उपदेसु ॥ पाणंदा रे ! गुरु सामिहि उपदेसु ॥26॥ महि साहिं रमरिणहि रमहि, जे चक्काहिवहोइ । पाणवलेण जिणेव मुणि, सिवपुरि णियडा होइ131 ॥ पाणंदा रे ! सिवपुरि रिणयंडा होइ ॥27॥ सिक्ख 132 सुणइ133 सदगुरु भणइ,134 परमाणंद135 सहाउ । परमबोति136 तसु उल्हसइ, कोजइ णिम्मलु137 भाउ ॥ पाणंदा रे! कोजइ पिम्मलु भाउ138 ॥28॥ इंदिय-मणु वि छोहियउ,139 चेयणु140 कय141 उपदेसु142 । उदय करतउ वारियड,143 सुरणयउ जाणु ण देसु144 ॥ पाणंदा रे ! सुरणयउ जाणु ण देसु145 129॥ गयकुभत्यलि146 जेम दिढ, केसरि करइ147 पहा । परमसमाहि148 ण भुल्लहि, रहियउ हुइ149 णिरकार ॥ - पाणंदा रे ! रहियउ हुइ णिरकार 150 30॥ पुष्वकिय151 मल - णिज्जुरइ, गया रण होणहं देइ। अप्पा पुणु मणु रंगियउ, केवलणाणु हवेइ152 ॥ पाणंदा रे ! केवलणाण हवेइ ॥31॥ देव बजावहिं दुंदुहि, थुइ जु बंभु-मुरारि । इंदु-फरिणदु वि चक्कवइ, तेतिसु उरगहि वारु (रि)153 ॥ पाणंदा रे ! तेतिसु उरगहि वारु ॥32॥ केवलणाणु वि . उपज्जइ, सदगुरु-वचन-पसाउ । जगु सचराचर सो मुणइ, रहइ जु सहजसुभाउ154 ॥ प्रारदा रे! रहइ जु सहजसुभाउ ॥3311 सदगुरु 155 तूठा पावयइ,156 मुगति1 5 7-तिया-घर-वासु । सो गुरु णितु-णितु झाइया, जब लगि हिये उसासु158 ॥ पाणंदा रे ! जग लगि हिये उसासु ॥34॥
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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