SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाणंदि किउ . आणंदा चिदाणंदु साणंदु जिणु, सयलसरीरहं सोई। महाणंदि सो पूजियइ, गगणि मंडलु थिर होई ॥ ___ पाणंदा रे ! गगणि मंडलु थिर होई ॥ अप्पु णिरंजणु अप्पु सिउ, अप्पा परमाणंदु । मूढ कुदेवउण पूजियइ,10 गुरु विणु भूलउ अंधु11 ॥ पाणंदा रे ! गुरु विणु भूलउ अंधु ॥2॥ अट्ठसठ्ठ12 तीरथ परिभमइ,13 मूढा मरइ भमंतु14। अप्पा15 देउ रण18 वंदहि,17 घट महिं देव अणंदु18 ॥ पाणंदा रे ! घट महिं देव अणंदु ॥3॥ भीतर भरियउ पाउमलु,19 मूढा करहि सणाणु: । जे मल लागा चित्त महि,21 ते किम जाय सणाणु ॥ पाणंदा रे ! ते किम जाय सणाणु ॥4॥ झाणु सरोवर अमिय जलु,24 मुणिवर करइ सणाणु । अट्ठकम्ममलु धोवहि,26 णियडा पाहु णिव्वाणु ॥ आणंदा रे ! रिणयडा पाहु रिणव्वाणु ॥5॥ वेणी-संगमि जिण8 मरहु, जलरिणहि झंप मरेहु । झाणग्गिहि तणु जालि करि,30 कभ्मपडल खउ लेहु 1 ॥ पाणंदा रे ! कम्मपडल खउ लेहु ॥6॥ सत्थु पढंतउ मूढ जइ, पालइ जण विवहारु । काई अचेयण पूजियइ,34 नाही मोक्खु दुवारु ॥ पाणंदा रे ! नाही मोक्खु दुवार ॥7॥
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy