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________________ अहिंसा का स्रोत आत्मा का अस्तित्व, आत्मा की शाश्वतता, कर्म और पुनर्जन्म - ये आचार शास्त्र के आधारभूत तथ्य हैं। पुनर्जन्म और आत्मा के आधार पर जो आचार संहिता और जीवन शैली बनेगी, वह एक प्रकार की होगी। जहां आत्मा को अशाश्वत माना गया, वहां न कर्म है और न पुनर्जन्म । इसकी आचार संहिता दूसरे प्रकार की बनेगी, जीवनशैली भी भिन्न प्रकार की बनेगी। - आत्मा की शाश्वत स्थिति है। इसी आधार पर एक ऋषि के मन में एक चिन्तन आया वह कौन-सा कर्म है, जिससे मेरी दुर्गति न हो। मृत्यु के बाद मैं नीची गति में न जाऊं। मैंने जो विकास किया है, मैं मानव बना हूँ। हमारी दुनिया में सबसे बड़ा विकास का शिखर है, वह मानव है। मनुष्य की बहुत विशेषताएं हैं, इसमें असीम काम करने की शक्ति है। अपने आनन्द का अनुभव करने की क्षमता है। इसका नाड़ी तंत्र और ग्रंथितंत्र बहुत विकसित है। इसका शरीर सबसे अधिक विकसित है। मैं इस गति में आ चुका हूँ। पशु योनि, पक्षी योनि-सबको अतिक्रान्त कर नरक गति का अतिक्रमण कर मैंने विकास किया, मैं मनुष्य बन गया। हमारी दुनिया में एक इन्द्रिय से लेकर पांच इन्द्रिय वाले जीव हैं। छोटे-छोटे जीव जन्तु, पेड़-पौधे हैं। जिनका ज्ञान पूरा विकसित नहीं, जिनमें भाषा की क्षमता नहीं, जिनमें विकास करने की अर्हता नहीं, इन सबका अतिक्रमण कर मैं मानव बन चुका हूँ। अब कौन - सा कर्म मैं करूं जिससे जो विकास हो चुका है, अब इससे नीचे न जाऊं। जो गति मेरी हो गई है, अब दुर्गति न हो। नीचे जाना दुर्गति है। वह कौन-‍ -सा आचरण है, जिससे मैं फिर न फसूं, नीचे न जाऊं। इस चिन्तन में से आचार - शास्त्र का विकास हुआ। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2008 Jain Education International आचार्य महाप्रज्ञ यदि तत्त्व विद्या न हो, दर्शन न हो तो शायद व्यवहार को चलाने के लिए कोई संहिता बन सकती थी फिर भी इस संहिता का विकास कभी नहीं हुआ होगा, इस संहिता के साथ तीन काल कभी नहीं जुड़े होंगे। तीन काल तभी जुड़ते हैं जब हमारा For Private & Personal Use Only 55 www.jainelibrary.org
SR No.524637
Book TitleTulsi Prajna 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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