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श्रावक का आचार
श्रावक के आचार धर्म को द्वादश व्रतों के रूप में निरूपित किया गया है। श्रावक अत्यन्त निष्ठा के साथ इन व्रतों का पालन करता है। उपासक दशांग' सूत्रानुसार गृहस्थ द्वारा आचरित द्वादश व्रतों को अणुव्रत और शिक्षाव्रतों में विभाजित किया गया है। जबकि सिद्धान्त ग्रन्थों' में अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत ऐसे तीन विभागों में बाँटकर द्वादश व्रतों को आचरणीय बतलाया गया है। ये द्वादश व्रत इस प्रकार हैं- पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत ।
पाँच अणुव्रत- अणु शब्द अण् धातु से उण् प्रत्यय लगने से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है- बारीक, नन्हा, लघु ।' अणुव्रत का मतलब है - छोटे व्रत। श्रमण हिंसादि का पूर्ण रूप से परित्याग करता है, उसके व्रत महाव्रत कहलाते हैं पर श्रावक उन व्रतों का पालन मर्यादित रूप से करता है, इसलिए उसके व्रत अणुव्रत कहे जाते हैं। पांच अणुव्रत हैं- 1. अहिंसाणुव्रत, 2. सत्याणुव्रत, 3 अचौर्याणुव्रत, 4. ब्रह्मचर्याणुव्रत, 5. अपरिग्रहाणुव्रत ।
साध्वी प्रवीण लता
अणुव्रत मूलतः तो पांच ही माने गये हैं, परन्तु दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ चारित्रसार में रात्रि भोजन त्याग को छठा अणुव्रत माना गया है । ' सर्वार्थसिद्धि में यद्यपि भोजन त्याग की गणना छट्ठे अणुव्रत के रूप में नहीं की गई है फिर भी वहां यह कहा गया है कि अहिंसा व्रत की 'आलोकित भोजनपान' भावना में रात्रि भोजन विरमणव्रत का अन्तर्भाव हो जाता है । "
1. अहिंसाणुव्रत या स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत
स्थूल अर्थात् मोटे रूप से प्राणों का त्याग करना एवं ऐसी हिंसा से पूर्णतः निवृत्ति होना स्थूल प्राणातिपातविरमण व्रत है । जीवन पर्यन्त के लिए दो करण, तीन योग से स्थूल हिंसा का त्याग करना श्रावक का स्थूल प्राणातिपातविरमणव्रत है।'
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008
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