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________________ राज्य में गणनायक, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, मंत्री, लेखापाल, दौवारिक, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपाल आदि अनेक कार्यकारी लोग होते हैं जिनका अपना-अपना कार्यक्षेत्र और अपना-अपना दायित्व निश्चित होता था । " राजाओं का अपना विशाल अन्तःपुर भी होता । राज्य के प्रभाव का एक अंग होता वहां की सैन्यशक्ति । युद्ध के समय तो सेना का महत्व निःसंदेह था, विशेष अवसरों पर राजा महाराजा कहीं भी जाते तो चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित किया जाता। ज्ञातधर्मकथा में इसका अनेकशः उल्लेख हुआ है। 34 प्राचीन इतिहास में एक ओर राजाओं का प्रजावत्सल रूप मुखर हुआ है तो दूसरी ओर कहीं-कहीं उनकी क्रूरता भी खुलकर सामने आई है। ज्ञातधर्मकथा में राजा कनकरथ का उल्लेख आता है। वह राज्य,राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, पुर और अन्तःपुर में इतना मूर्च्छित हो गया, इतना गृद्ध और ग्रथित हो गया कि वह अपने पुत्रों को पैदा होते ही विकलांग बना देता । किसी के हाथों की अंगुलियां कटवा देता तो किसी के अंगुष्ठ। किसी की कर्णपाली कटा देता तो किसी का नासापुट चीर देता और किन्हीं के अंगोपांग विकृत कर देता। 35 ज्ञातधर्मकथा में प्रज्ञप्त राजा कनकरथ का यह सारा वर्णन उसकी क्रूरतापूर्ण छवि को प्रस्तुत करता है। सुन्दर स्त्रियों के लिए युद्ध और अपहरण की घटनाएं उस युग में आम बात थी। राजकुमारी मल्लि के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर जितशत्रु, प्रतिबुद्धि, चन्द्रच्छाय, रुक्मि, शंखराज और अदीनशत्रु इन छहों राजाओं ने एक साथ मिथिला नगरी पर आक्रमण कर दिया। 36 इसी तरह राजा पद्मनाभ ने जब द्रौपदी के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनी तो उसे प्राप्त करने के लिए मन बेताब हो उठा। उसने हर संभव प्रयास किया और देव सहयोग से द्रौपदी का अपहरण करवा लिया। पुनः पाण्डवों का श्री कृष्ण के साथ अवरकंका नगरी में आना, पद्मनाभ के साथ युद्ध करना, वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारा पद्मनाभ को समाप्त कर पुनः द्रौपदी को प्राप्त करना - ये सारे इतिहास दुर्लभ प्रसंग प्रस्तुत आगम ग्रंथ में प्राप्त हैं, जिन्हें भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में देखा जा सकता है। 37 कला, शिल्प और वाणिज्य कला सौन्दर्य का प्रतीक है। जहां सौन्दर्य होता है, वहां सत्य और शिव का वास होता है। भारतीय संस्कृति में कला का सदैव महत्व रहा है। प्रस्तुत आगम में स्थापत्य कला के अनेक स्रोत उपलब्ध होते हैं। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन में उल्लेख है कि "मेघ के माता-पिता ने विवाह से पूर्व आठ प्रासादावतंसक और एक भवन का निर्माण करवाया। यहां ज्ञातव्य है कि भवन की ऊंचाई आयाम की अपेक्षा कुछ कम तथा प्रसाद की ऊंचाई आयाम की अपेक्षा दुगुनी होती थी। एक मान्यता यह भी रही है कि भवन एक मंजिल वाला एवं प्रासाद एकाधिक मंजिल वाला होता था। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 Jain Education International For Private & Personal Use Only 77 www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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