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________________ और 'आकार' का न्यास वामशंख (ललाटास्थि) में किया जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार 'अकार' का ललाट या शिर पर और 'आकार' का मुख पर न्यास किया जाता है।” अंऔर अः ___ अनुस्वार और विसर्ग से अक्षर में विशिष्ट शक्ति उत्पन्न होती है। अकार के साथ अनुस्वार और विसर्ग का योग होने पर अं और अः निष्पन्न होते हैं। मंत्र शास्त्रीय दृष्टि से 'अं' का वर्ण श्वेत, गंध नीलोत्पल जैसा और स्वाद मधुर होता है तथा अः का वर्ण धूम्र, गंध कुंकुम जैसा और स्वाद क्षार होता है। तंत्र शास्त्र में 'अं' का वर्ण पीली बिजली जैसा और अः का वर्ण लाल बिजली जैसा माना गया है। 'अं' पुल्लिंग और 'अ' नपुंसक लिंग है।०० अं का ठुड्डी में और अः का नासान्तर में न्यास किया जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार अंका जिह्वा में और अः का ग्रीवा में न्यास किया जाता है। अं और अः दोनों बीजाक्षर हैं। अं का उपयोग गज वशीकरण में और अः का मृत्यु नाशन में होता है। यह ध्वनि प्रकम्पनों के आधार पर परीक्षणीय है। प्रश्न शास्त्र और अकार प्रश्न शास्त्र के अनुसार अकार, आकार और अः जीवसंज्ञक तथा अं धातुसंज्ञक माना जाता है। संदर्भ ग्रन्थ : 1. आवश्यक नियुक्ति, मूलभाष्य गा. 13 लेहं लिवीविहाणं, जिणेण वंभीए दाहिण करेणं। गणिअं संखाणं, सुंदरीइ वामेण उवइ8।। 2. समवाओ-46/2 बंभीए णं लिवीए छायालीसं माउयक्खरा पण्णत्ता। 3. समवाओ 46/2 पाद टिप्पण 4. धवला (13/5.5.46/249-260) 5. प्राकृत में ए, ऐ, ओ, औ को ह्रस्व भी माना जाता है। ___ भारतीय प्राचीन लिपिमाला-पृ. 46 (योगशास्त्र) पृ. 78 7. बृहत्कल्प भाष्य, गाथा-60 एक्केक्कमक्खरस उ, सप्पज्जाया हवंति इयरे य । संबद्धमसंबद्धा, एक्केक्का ते भवे दुविहा ।। तत्र अवर्णस्त्रिधा-इस्वो दीर्घः प्लुतत्वाच्च, पुनरेकैकस्त्रिधा-उदात्तोनुदात्तः स्वरितश्च, तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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