SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग्यदोष या स्मृति के विपर्यास से मैंने यहाँ जो कुछ अर्थहीन लिख दिया है, उसे आर्य जन शुद्ध कर लें, क्योंकि लिखने वाले (लिपिकर) लिखते समय प्रायः भ्रमग्रस्त हो जाते हैं। शुभमस्तु सर्वजगतां परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः।। सम्पूर्ण जगत् का शुभ हो, भूतगण परहित-निरत होवें। दोष नष्ट हो जावें तथा लोक सर्वत्र सुखी होवे। प्रायः सभी पुराने लेखक (प्रतिलिपि करने वाले) ग्रन्थ-समाप्ति के अवसर पर उक्त प्रकार से अपनी प्रतिलिपि के शोधन हेतु निवेदन करते हैं एवं सबके प्रति शुभकामनाएँ करते हैं। सन्दर्भ1. भट्ट सोमेश्वर द्वारा रचित काव्यादर्श ‘संकेत' का रसिकलाल छोटालाल परीख द्वारा सम्पादित संस्करण दो भागों में राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से 1959 ई. में प्रकाशित हुआ था। 2. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.1.10; 3. 'श्लिष्टमस्पृष्टशैथिल्यम्'- काव्यादर्श 1.43; 4. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.1.22; 5. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.1.24; 6. ‘कान्तं सर्वजगत्कान्तं लौकिकार्थानतिक्रमात्'- काव्यादर्श- 1.85; 7. 'अर्थदृष्टिः समाधिः'-काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.2.6; 3. 'श्लिष्टमस्पृष्टशैथिल्यम्'- काव्यादर्श 1.43; 4. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.1.22; 5. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति- 3.1.24; 6. ‘कान्तं सर्वजगत्कान्तं लौकिकार्थानतिक्रमात'- काव्यादर्श- 1.85%B 7. 'अर्थदृष्टिः समाधिः'-काव्यालंकारसूत्रवृत्ति-3.2.6;8. काव्यप्रकाश- 10.10; 9. काव्यप्रकाश- सप्तम उल्लास में प्रसिद्धिविरुद्ध दोष के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत पद्य। 10. काव्यप्रकाशः (संकेतमधुमतीभ्यां समलंकृतः, द्वितीयसम्पुटः- 7.10) दशम उल्लासः, पृ0 610___12; सम्पादकः- एन्.एस्. वेयटनाथाचार्यः, प्राच्यविद्या संशोधनालय मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर 1977 ई. (प्राच्यविद्या संशोधन ग्रन्थमाला-122); 11. काव्यप्रकाश- 4.6; निवास- 28, सुरेन्द्रपाल कॉलोनी (निकट- संजीवनी अस्पताल), न्यू सांगानेर रोड जयपुर-302019 (राजस्थान) 92 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524635
Book TitleTulsi Prajna 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy