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________________ उस युग में काश्मीर में ही सर्वाधिक विद्वानों के होने से यह प्रसिद्ध हो गया था कि * सरस्वती देवी शेष भारत से रूठ कर काश्मीर (शारदादेश) चली गई। इसी प्रसिद्धि को आधार बनाकर संकेतकार ने उक्त उत्प्रेक्षा की है । ग्रन्थ के अन्त में भी- 'षट्तर्कीललनाविलासवसतिः स्फूर्जत्तपोहर्पति:' इस श्लोक में माणिक्यचन्द्र ने अपने इन्हीं गुरुदेव का वर्णन किया है। जैसा कि ऊपर कह चुके हैं कि- 'षट्तर्कीललनाललामनि' यह ऊपर उद्धृत श्लोक संकेतकार ने ध्वनि और गुणीभूतव्यङ्ग्य की संसृष्टि के उदाहरण के रूप में दिया है। यहाँ उन्हीं के शब्दों में ध्वनि व गुणीभूतव्यङ्ग्य की संसृष्टि इस प्रकार है " अत्र ललनाललामनि” इति अविवक्षितवाच्यो ध्वनिः । 'जाने', 'तादृश' इति पदे गुणीभूतव्यङ्घये । 'जाने' इति पदेन उत्प्रेक्ष्यमाणानन्तधर्मव्यञ्जकेनापि वाच्यमेव उत्प्रेक्षणरूपं वाक्यार्थीक्रियते। ‘तादृश' इति पदेन असामान्यगुणौघः व्यक्तोऽपि गौणः, स्मृतिरूपस्य वाच्यस्य प्राधान्येन चारुत्वहेतुत्वात् । " (काव्यप्रकाश-संकेतः, पञ्चमोल्लास, कारिका - 46 ) पञ्चमोल्लासान्ते - संकेतगमने दत्तां मनः सुमनसां जनः । ध्वनिर्यत्र गुणीभूतः श्रोत्रानन्दी निरूपितः || ( पृ096) जिज्ञासु जन को चाहिए कि वह सुमना जनों (विद्वानों) के संकेतगमन में मन लगाएं, जहाँ श्रोत्रानन्दी (श्रवण - रमणीय) गुणीभूत ध्वनि निरूपित किया है। षष्ठोल्लासारम्भे- संकेतरीतिरेषैव ज्ञानश्रीभुक्तयेऽद्भुता । संत की यह रीति ही ज्ञानलक्ष्मी के उपभोग के लिए अद्भुत रीति है, जहाँ वाणीगत ध्वनि को वर्णना का विषय बनाया गया है। 80 वर्णनाविषयीचक्रे यत्र वाणीगतध्वनिः ॥ ( पृ० 120) सप्तमोल्लासारम्भे- संकेतवर्त्मनाऽनेन सम्यग्घटनतत्पराः । नन्दयन्ति विदग्धानां मनांसि सुमनोगिरः ।। ( पृ० 122) संकेत के इस मार्ग से अच्छी प्रकार संघटना - युक्त बुधजनों की वाणियाँ विदग्ध जनों के मन को आनन्दित करती हैं। अष्टमोल्लासारम्भे - वाणी काव्यप्रकाशस्य गुणतत्त्वविवेकिनी । Jain Education International संकेतेनैव घटते यदि कस्यापि धीमतः । (पृ0 185 ) गुणतत्त्व का विवेचन करने वाली काव्यप्रकाश की वाणी यदि किसी प्रतिभावान को समझ में आती है तो संकेत की सहायता से ही । · For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 139 www.jainelibrary.org
SR No.524635
Book TitleTulsi Prajna 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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