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की क्रिया में हेतुकर्ता होता है । जैसे गति परिणामत पवन ध्वजाओं के हेतुकर्ता होता है और
मूर्ति के निर्माण में मूर्तिकार प्रेरक निमित्त। इस प्रकार प्रेरक निमित्त कार्य को मूर्त रूप देने का कार्य करते हैं। छात्रों के अध्ययन में अध्यापक प्रेरक निमित्त हैं, क्योंकि वह सक्रिय होकर प्रेरणा देता है। छात्रों के ज्ञान को मूर्त रूप देता है । इस प्रकार क्रिया के क्रियान्वयन में प्रेरक निमित्त कार्य का रूप निर्धारित करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | प्रेरक निमित्त की तरह ही उदासीन निमित्त के बिना कार्य असम्भव होता है । उदासीन निमित्त अन्य द्रव्य को प्रेरणा किये बिना उसके सहायक कारण होते हैं।
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इसलिए उदासीन निमित्त को भी अविनाभावी सहायक कारण माना गया है ‘पंचास्तिकाय' में आचार्य कुन्दकुन्द ने उदासीन निमित्त की विशेषता बताते हुए कहा है'धर्म द्रव्य स्वयं गमन न करते हुए तथा अधर्म द्रव्य पहले से ही स्थिति रूप वर्तते हुए पर-द्रव्य को गमन व स्थिति न कराते हुए जीव व पुद्गलों को अविनाभावी सहायरूप कारण मात्र से गमन व स्थिति में अनुग्रह करते हैं। वहीं पर आचार्य आगे कहते हैं-सिद्ध भगवान् स्वयं उदासीन रहते हुए भी सिद्धों के गुणानुराग रूप से परिणत भव्यों की सिद्धगति में सहकारी कारण होते हैं । 14 इसप्रकार इच्छाशक्ति से रहित एवं निष्क्रिय द्रव्य उदासीन निमित्त होते हैं जैसे धर्म, अर्धम, आकाश, एवं काल द्रव्य । इसी प्रकार छात्रों के अध्ययन में जितनी उपयोगिता अध्यापक की है उतनी ही पुस्तक एवं दीपक की भी है। कोई मूर्तिकार बिना छेनी, हथौड़े के मात्र अपनी इच्छा से मूर्ति का निर्माण नहीं कर सकता है।
वस्तुतः उक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि निमित्त कारण के इन दोनों प्रकारों में से किसी भी एक की भूमिका को महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता है। प्रेरक एवं उदासीन निमित्त दोनों मिलकर ही किसी कार्य के होने में सहायक होते हैं । निमित्त कारण का स्वरूप इन दोनों कारणों के संयुक्त रूप का ही परिणाम है।
निमित्त कारण की उपयोगिता
आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने समय प्राभृत में निमित्त कारण की उपयोगिता का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा है कि मात्र कुम्भकार की उपस्थिति से घट का निर्माण नहीं होता, अपितु उसके योग तथा उपयोग घट का उत्पाद करते हैं । निमित्त मात्र उपस्थित ही नहीं रहता बल्कि प्रभाव भी डालता है, सहायता भी करता है। विश्व में छहों द्रव्य परस्पर प्रभावित करते हैं, इसीलिए इसका नाम विश्व है। 15 आचार्य उमास्वामी ने तत्वार्थसूत्र में 'गतिस्थित्युपग्रहौ, धर्मोधर्मयोरूपकारः" आदि अनेक सूत्रों में निमित्त कारण की महत्ता बताते हुए प्रभाव प्रभाव्य व उपग्रही - उपकृत रूप को प्रस्तुत किया है। इस प्रकार मात्र उपस्थित रहने वाला पदार्थ ही निमित्त नहीं होता अपितु वही पदार्थ निमित्त कारण होता है जो कार्य में उपयोगी हो ।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई -- दिसम्बर, 2006
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