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________________ अर्थात् विषयभोग की आकांक्षा निदान है। इसी तरह सूत्र 7.37 में इस सन्दर्भ में यह बताया है कि आगे भोगों की आकांक्षा करना निदान है। निदान के प्रकार भगवती आराधना में निदान के तीन भेद बतलाएं हैं - तत्थं णिदाणं तिविहं होई पसत्थापसत्थभोगकदं। तिविधं पि तं णिदाणं परिपंथो सिद्धिमग्गस्स॥ "उन शल्यों में निदान नामक शल्य के तीन भेद हैं- प्रशस्त निदान, अप्रशस्त निदान और भोग निदान। तीनों ही प्रकार के निदान मोक्ष के मार्ग रत्नत्रय के विरोधी हैं।" आराधना में प्रशस्त निदान का वर्णन इस प्रकार हैं - 'संयम में निमित्त होने से पुरुषत्व, उत्साह, शरीरगत दृढ़ता, वीर्यान्तराय के क्षयोपक्षम से उत्पन्न वीर्यरूप परिणाम, अस्थियों के बंधन विशेष रूप वज्र ऋषभनाराच संहनन आदि संयम साधन मुझे प्राप्त हों, इस प्रकार चित्त में विचार होना प्रशस्त निदान है तथा मेरा जन्म श्रावक कुल में हो। ऐसे कुल में हो जो दरिद्र न हो, बन्धु बांधव परिवार न हो, ऐसी प्रार्थना प्रशस्त निदान है।' अप्रशस्त निदान को समझाते हुए ग्रन्थकार लिखते हैं- 'मान कषाय के वश जाति, कुल, रूप आदि तथा आचार्यपद, गणधरपद, जिनपद, सौभाग्य, आज्ञा और आदेय आदि की प्राप्ति की प्रार्थना करना अप्रशस्त निदान है।' अन्य के वध की कामना करना भी अप्रशस्त निदान के अन्तर्गत आता है। भोग निदान को समझाते हुए लिखते हैं' - 'देवों और मनुष्यों में होने वाले भोगों की अभिलाषा करना तथा भोगों के लिए नारीपना, ईश्वरपना, श्रेष्ठिपना, सार्थवाहपना, नारायण और सकल चक्रवर्तीपना प्राप्त होने की वांछा करना भोग निदान है।' निदान करना अनुचित निदान आर्तध्यान है। निदान न करने की प्रेरणा भगवती आराधना ग्रन्थ में कई गाथाओं में दी गई है। कुछ गाथाएं निम्नानुसार हैं ___ 'जो निदान करता है वह लोहे की कील के लिए अनेक वस्तुओं से भरी नाव को जो समुद्र में जा रही है, तोड़ता है, भस्म के लिए गोशीर्षचन्दन को जलाता है और धागा प्राप्त करने के लिए मणिनिर्मित हार को तोड़ता है। इस तरह जो निदान करता है वह थोड़े से लाभ के लिए बहुत हानि करता है।'' 48 - तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524628
Book TitleTulsi Prajna 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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