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________________ इसके साथ ही समाज में अज्ञानी और रसलोलुप व्यक्तियों ने हिंसा करने के अन्य रास्ते भी खोज लिए थे। वे कहते थे कि छोटे-छोटे प्राणियों को भोजन आदि के निमित्त मारने के स्थान पर एक बड़े प्राणी हाथी, बड़े मछली आदि को मार कर अधिक समय तक अपनी भूख मिटाने में हिंसा कम है। आचार्य अमृतचन्द्र ने ऐसे अज्ञानियों को सावधान करते हुए कहा कि यह तो अल्पारम्भ से बहु आरम्भ में लिप्त होने का मार्ग है। तीव्र रागक्रिया के बिना बहुआरम्भ सम्भव नहीं। यह तो संकल्पपूर्वक, जानबूझ कर पंचेन्द्रिय प्राणियों का घात होगा, जो महापाप है। इससे बचना चाहिए। यथा बहुसत्वघातजनितादशनाद्वरमेकसत्वघातोत्थं। इतयाकलयय कार्यो न महासत्वस्य हिंसनं जातु ॥ 82॥ इसी प्रकार का पाप इन विचारों और कार्यों में भी है1. एक हिंसक पशु को मार दिया जाए ताकि वह अन्य प्राणियों की हिंसा न करें। 2. हिंसक प्राणियों को तीव्र पाप से बचाने के लिए उन पर दया करके उन्हें शीघ्र मार देने का विचार। 3. उन अत्यधिक दुखी, रोगी, अभावग्रस्त व्यक्तियों, जीवों को भी उन्हें दुःख से छुटकारा देने के लिए मार देने का विचार । 4. अत्यधिक सुखी, निरोगी जीवों को शीघ्र मार देने का विचार ताकि वे सुखपूर्वक मरकर अगले जन्म में सुखी पैदा हों। 5. भूखे व्यक्ति की क्षुधा शान्त करने के लिए उसे मांसाहार का दान करना आदि। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार का परहित सोचकर प्राणियों के वध की बात सोचना अज्ञान और अंधविश्वास के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ऐसे विचारों और कार्यों से व्यक्ति अपनी हिंसा को अधिक बढ़ा लेता है और वह उन हिंसक जीवों से भी बड़ा हिंसक और क्रूर बन जाता है। अहिंसक को इन सब कुटिल विचारों और कार्यों से बचना चाहिए, क्योंकि जिनमत के रहस्य को समझने वाले, विशुद्ध मति के लोग कभी हिंसात्मक कार्यों, विचारों में लिप्त नहीं होते। यथा को नाम विशति मोहं नयभंगविशारदानुपास्य गुरून्। विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमतिः॥ १०॥ अहिंसक व्यक्तियों को अज्ञानियों के अयोग्य और लुभावने कार्यों को देखकर व्याकुल नहीं होना चाहिए। उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि अहिंसा अमरत्व दिलाने तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2006 E 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524628
Book TitleTulsi Prajna 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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