________________
इससे भी आगे जायें तो स्वंय पृथ्वी केवल अपने कक्ष के ही चारों ओर एक . सेकेण्ड में 18 मील की गति से घूम रही है। स्वयं सूर्य भी गैलेक्सी के चारों
ओर घूम रहा है और स्वयं गैलेक्सी भी दूसरी गैलेक्सी के चारों ओर घूम रही है। इस प्रकार विश्व में कुछ भी पूर्णत: स्थिर नहीं है। अतः हम केवल एक की अपेक्षा दूसरे को स्थिर कह सकते हैं। इस बात का पता आईन्सटीन से तीन सौ वर्ष पहले गैलेलियो लगा चुका था और इस बात को समझने में
कोई कठिनाई भी नहीं है। 2. आईन्सटीन के सामने गति संबंधी नयी बात आयी वह यह कि प्रकाश की गति
सभी स्थितियों में समान रहती है। प्रकाश की गति की समानता का अर्थ समझना होगा ताकि हम उससे उत्पन्न होने वाली विचित्र स्थिति को समझ सकें । कल्पना करें कि1. हम एक स्थान पर खड़े हैं और दूसरे स्थान पर एक बल्ब जल रहा है तो स्पष्ट है
कि प्रकाश हम तक 186000 मील प्रति सेकेण्ड की गति से आयेगा। यहां तक कोई समस्या नहीं है। हमे जिस ओर से प्रकाश आ रहा है-उसी ओर 1,00,000 मील प्रति सेकेण्ड की गति से चलें तो ऐसी स्थिति में प्रकाश की गति 186000+100000=286000 मील प्रति सेकेण्ड होनी चाहिए। (यदि हम रेल में यात्रा कर रहे हैं और सामने से बराबर की समानान्तर पटरी पर दूसरी रेल हमारी रेल से विपरीत दिशा में जा रही हो तो स्पष्ट अनुभव में आता है कि बराबर वाली रेल की गति बहुत तेज प्रतीत होती है-और वह रेल बहुत थोड़े से समय में हमारी रेल को पार कर जाती है, क्योंकि हमारी रेल की गति और सामने से आने वाली रेल की गति मिलकर जो गति बनती है उस गति से हमारी रेल को पार किया जाता है। अनुभव में आने वाले इसी उदाहरण के आधार पर यह कल्पना की गयी है।) आश्चर्य की बात यह है कि प्रकाश के साथ ऐसा नहीं होता-भले हम खड़े रहें अथवा प्रकाश स्रोत की ओर चले-प्रकाश की गति 186000 मील प्रति
सेकेण्ड ही रहती है। 3. प्रकाश जिस ओर से आ रहा है हम भी उसी दिशा में 100000 मील प्रति
सेकेण्ड की गति से चलें तो प्रकाश की गति 86,000 मील प्रति सेकेण्ड होनी चाहिए। (यदि हम एक रेल में एक गति से एक ओर चल रहे हैं और दूसरी रेल
6
- तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org