SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस विवेक से युक्त होता है वह आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है। भगवान महावीर ने वाणी विवेक के बहुत सुन्दर सूत्र दिए, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं : 1. बिना पूछे नहीं बोलना- (नापुट्ठो वागरे किंचि)' जिस प्रकार पानी का मूल्यांकन प्यासा ही कर सकता है उसी प्रकार ज्ञान का मूल्यांकन जिज्ञासु व्यक्ति ही कर सकता है। इसलिए जब तक जिज्ञासु व्यक्ति प्रश्न न करे तब तक मौन रहना ही उचित होता है। अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिए किसी के बिना पूछे बोलना या सलाह देना एक प्रकार का अज्ञान ही है। यहाँ अनपेक्षित रूप से बिना पूछे बोलने का निषेध है। कुछ सूचनाएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें बिना पूछे ही बताना आवश्यक होता है। वहाँ पर इस सूत्र का अपवाद भी है। 2. बीच में नहीं बोलना-(भासमाणस्स अंतरा) बीच में बोलना दो तरह से होता है(1) दो व्यक्ति आपस में बात कर रहें हो तब उनके बीच में बोलना। ऐसा करने से सामान्य शिष्टाचार का उल्लंघन भी होता है और दूसरों के कार्य में बाधा भी उत्पन्न होती है। (2) कोई व्यक्ति कुछ कर रहा हो तब बिना कथन के सन्दर्भ को समझे बीच में टोकना। जैसे :- 'यह ऐसा है, वैसा नहीं' या आपने यह कहा था, वह नहीं। यदि कुछ कहना अत्यन्त अपेक्षित हो तो बीच में बोलने की आज्ञा लेकर तथा बाधा के लिए क्षमा याचना कर अपनी बात कही भी जा सकती है। लेकिन अपनी विद्वता प्रदर्शन करने के लिए दूसरों के बीच में बोलना तुच्छता का द्योतक होता है। 3. वाचालता नहीं करना - अनावश्यक असंयमित बोलने वाले को वाचाल कहते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में वाचाल' शब्द के लिए 'मुहरी' शब्द का प्रयोग हुआ है। व्याख्या साहित्य में 'मुहरी' शब्द के तीन अर्थ मिलते हैं(1) मुखारि- जिसका मुख ही अरि-शत्रु है अथवा जिसका मुँह (वचन) इहलोक और परलोक का उपकार करता है। (2) मुधारि- असम्बन्ध भाषा बोलने वाला अर्थात् जो पात्र-अपात्र का भेद किए बिना सूत्र का अर्थ बता देता है या 'यह ऐसा ही है' ऐसा ऐकान्तिक __ आग्रह पूर्वक बोलता है। (3) मुखर- वाचाल, अनर्गल प्रलाप करने वाला। 40 - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524627
Book TitleTulsi Prajna 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy