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________________ सिद्धान्त के अनुसार संक्रमण द्वारा यह संभव है । अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जैन कर्म - सिद्धान्त के अनुसार मानव जीनोम परियोजना, जैनेटिक अभियांत्रिकी, जैनेटिक सर्जरी, मानव क्लोनिंग द्वारा एक ही शक्ल-सूरत वाले जीव पैदा करना, कोशिका के केन्द्रक को परिवर्तित कर देना संभव है । अतः वंश-परम्परा विज्ञान ( Genetic Science) कर्म सिद्धान्त के लिए कोई चुनौती नहीं है बल्कि जैन कर्म-सिद्धान्त को व्यवस्थित तरीके से समझ लेने पर वंश-परम्परा विज्ञान ( Genetic Science) की व्याख्या जैन कर्म - सिद्धान्त के आधार पर सरलता से की जा सकती है । जैन कर्म - सिद्धान्त और वंश-परम्परा विज्ञान (Jain Theory of Karma and Genetic Science) दोनों का गहन अध्ययन व शोध कर जन-मानस तक यह तथ्य उजागर करना है कि हर प्राणी पुरुषार्थ कर संक्रमण के द्वारा अशुभ कर्मों को शुभ में बदल सकता है तथा त्याग, संयम, संवर और निर्जरा के द्वारा स्थूल शरीर के 'जीन्स' के स्वरूप को भी बदला जा सकता है। वंश-परम्परा विज्ञान ( Genetic Science) का शोध कर यह उद्घाटित करना है कि किसी भी प्राणी के जख्मी 'जीन्स' का प्रत्यारोपण कर स्थूल शरीर को उन्नत किया जा सकता है। सामाजिक उपयोगिता इस शोध कार्य से संसारी आत्मा की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति से चिपकने वाले शुभअशुभ कर्मों की जानकारी मानव जगत को मिलेगी जिससे व्यक्ति अनैतिकता एवं हिंसा करने में संकोच करेगा । प्राणी मात्र के स्थूल शरीर रचना में 'जीन्स' किस प्रकार अपना योगदान देते हैं, जैसा 'जीन्स' वैसा स्थूल शरीर का महत्त्व जन-मानव को प्रकट होगा, जिससे वे अपने 'जीन्स' के शुद्धिकरण के बारे में सचेत होंगे। हमारी आत्मा चिन्तन व पुरुषार्थ में स्वतंत्र है, परन्तु कर्मों की बद्धता के कारण परतंत्र है। आत्मा के पुरुषार्थ से जीव त्याग, संयम, संवर, निर्जरा करके प्राणी अपनी आत्मा की शुद्धि करके स्थायी सुखानुभूति प्राप्त कर सकता है। 'भाव परिवर्तन' द्वारा कर्मों की निर्जरा तथा 'जीन्स' का रूपान्तरण किया जा सकता। इस शोध से जब सूक्ष्म एवं स्थूल शरीर के शुद्धिकरण का सूत्र जन-मानस के हाथ लगेगा तो वह भावों की शुद्धि करके एक अच्छे समाज, राष्ट्र तथा विश्व का निर्माण कर सकेगा। इस शोध प्रबन्ध में इतनी सामाजिक अर्हता है कि वह वर्तमान भावात्मक युगीन समस्याएं परिग्रह, आतंकवाद, हिंसा, जनसंख्या - वृद्धि, लूटखसोट, कदाग्रह, गरीबी, बीमारी का स्थायी समाधान दे सकता है। इस शोध कार्य से उद्घाटित होगा कि वंश-परम्परा विज्ञान (Genetic Science) की शाखा क्लोनिंग 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 130 www.jainelibrary.org
SR No.524626
Book TitleTulsi Prajna 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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