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________________ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे । तिण्णि गुणव्वयाइं तं जहा- अणत्थदंडवेरमणं, दिसिव्वयं, उवभोग-परिभोगपरिमाणं। चत्तारि सिक्खावयाई तं जहा- सामाइयं, देसावगासियं, पोसहोववासे, अतिहि-संविभागे, अपच्छिमा-मारणंतिया-संलेहणा-झूसणाराहणा, अयमाउसो! अगार-सामाइए धम्मे पण्णत्ते एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवइ।" भगवान् ने अगारधर्म बारह प्रकार का बतलाया- पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाव्रत। पांच अणुव्रत इस प्रकार हैं 1. स्थूल -मोटे तौर पर, अपवाद रखते हुए प्राणातिपात से निवृत्त होना। 2. स्थूल मृषावाद से निवृत्त होना। 3. स्थूल अदत्तादान से निवृत्त होना। 4. स्वदारसंतोष- अपनी परिणीता पत्नी तक मैथुन की सीमा करना। 5. इच्छा- परिग्रह की इच्छा का परिमाण या सीमाकरण करना। तीन गुणव्रत इस प्रकार हैं1. अनर्थदंड-विरमण- आत्मा के लिए अहितकर या आत्मगुणघातक निरर्थक प्रवृत्ति का त्याग। 2. दिग्व्रत- विभिन्न दिशाओं में जाने के सम्बन्ध में मर्यादा या सीमाकरण। 3. उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत- उपभोग- जिन्हें अनेक बार भोगा जा सके, ऐसी वस्तुएँ-जैसे वस्त्र आदि तथा परिभोग जिन्हें एक ही बार भोगा जा सके- जैसे भोजन आदि- इनका परिमाण- सीमाकरण। चार शिक्षाव्रत इस प्रकार हैं1. सामायिक- समता या समत्वभाव की साधना के लिए एक नियत समय (न्यूनतम एक मुहूर्त-48 मिनिट) में किया जाने वाला अभ्यास। 2. देशावकाशिक-नित्य प्रति अपनी प्रवृत्तियों में निवृत्ति-भाव की बुद्धि का अभ्यास। 3. पोषधोपवास- अध्यात्म-साधना में अग्रसर होने के हेतु यथाविधि आहार, अब्रह्मचर्य आदि का त्याग तथा 4. अतिथि-संविभाग- जिनके आने की कोई तिथि नहीं, ऐसे अनिमंत्रित तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524626
Book TitleTulsi Prajna 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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