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________________ और खाने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूंगा, यावज्जीवन के लिए तीन करण तीन योग से - मन से, वचन से काया से न करूंगा, न कराऊंगा और न करने वाले का अनुमोदन करूंगा। भंते मैं अतीत के रात्रि भोजन से निवृत्त होता हूँ, उसकी निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूं और आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूँ। छट्टे भंते ! बए उवदिओमि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमण- भंते मैं छठे व्रत में उपस्थित हुआ हूँ। इसमें सर्व रात्रि-भोजन की विरति होती है। रत्नकरण्ड श्रावकाचार में स्वामी समन्तभद्र ने छठी प्रतिमा का नाम - 'रात्रिमुक्तिविरत' रखा है और लिखा है अन्नं पानं खाद्यं लेहयं नाश्नाति यो विभावर्याम। स च रात्रिमुक्तिविरत: सत्वेष्वनुकम्पमानमनाः॥ अर्थात् जो प्राणियों पर दया करके रात्रि में चारों प्रकार के भोजन का त्याग करता है उसे रात्रिमुक्तिविरत कहते हैं। स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा में भी छठी प्रतिमा का यही स्वरूप दिया है और लिखा है जो णिसिमत्ति वजदि सो उववासं करेदि छम्मासं। संवच्छरस्य मझे आरंभचयदि रयणीए॥ 82 जो पुरुष रात्रि-भोजन का त्याग करता है, वह एक वर्ष में छह मास उपवास करता है, क्योंकि वह रात्रि में आरम्भ का त्याग करता है। आचार्य अमितगति ने लिखा है- जिस रात्रि में राक्षस, भूत और पिशाचों का संचार होता है, जिसमें सूक्ष्म जन्तुओं का समूह दिखाई नहीं देता है, जिसमें स्पष्ट न दिखने से त्यागी हुई भी वस्तु खा ली जाती है, जिसमें घोर अंधकार फैलता है, जिसमें साधु वर्ग का संगम नहीं है, जिसमें देव और गुरु की पूजा नहीं की जाती है, जिसमें खाया गया भोजन संयम का विनाशक है, जिसमें जीते जीवों के भी खाने की संभावना है, जिसमें सभी शुभ कार्यों का अभाव होता है, जिसमें संयमी पुरुष गमनागमन क्रिया भी नहीं करते हैं, ऐसे महादोषों के आलयभूत, दिन के अभाव स्वरूप रात्रि के समय धर्म कार्यों में कुशल पुरुष भोजन नहीं करते हैं। खाने की गद्धता के दोषवर्ती जो दुष्ट चित्तपुरुष रात्रि में खाते हैं, वे लोग भूत, राक्षस, पिशाच और शाकिनी - डाकिनियों की संगति कैसे छोड़ सकते हैं ? अर्थात् रात्रि में राक्षस पिशाचादिक ही खाते हैं, अतः रात्रि भोजियों को तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2005 - - 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524624
Book TitleTulsi Prajna 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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