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युग में यह जरूर कहा जा रहा है कि कोई ऐसा तरीका खोजा जाये कि श्रावक भौतिक विकास के नये-नये आयामों को भी छुए और श्रावकाचार का अक्षरशः पालन भी कर सके। पर शायद ऐसा तरीका कभी भी न खोजा जा सके, क्योंकि संसार भोगों से निवृत्त कराने की प्ररेणा देने वाला श्रावकाचार उन्हीं की अभिवृद्धि और उनमें आसक्ति को कैसे बढ़ावा दे सकता है। फलतः दोनों में से किसी एक का समर्पण करना ही होगा अर्थात् किसी एक के लिए दूसरे का बलिदान और यदि हमें इन दोनों में से कोई एक बीच का रास्ता निकालना ही है तो हमें इस बात का निर्णय कर लेना होगा कि हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य क्या है? जीवन के लक्ष्य पर आधारित श्रावकाचार का अस्तित्व :
___ मूलतः श्रावकाचार क्या व्रत, उपवास आदि क्रियाकलापों मात्र को ही कहा जायेगा या आत्म कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत सोद्देश्य किये गये व्रत, अणुव्रत
और भावक्रियाओं को कहा जाएगा। यदि इस बात का निर्णय हो जाये और उसके साथ साथ उन लक्ष्यों का भी निर्णय हो जाये जिन्हें हम अपने जीवन में मुख्यता प्रदान करना चाहते हैं तो नि:संदेह समाधान हो सकता है। आम श्रावक की धारणा मुख्य रूप से निम्न दो में से एक हो सकती है -
1. पहली धारणा - मुख्य रूप से तो मुझे अपना कल्याण कर शाश्वत आत्म-सुख प्राप्त करने का प्रयास करना है और मैं उसी के लिए प्रयासरत हूँ और आजीविका चलाने के लिए धनार्जन आवश्यक है तो उसे मुझे गौण रूप से करना पड़ता है लेकिन वह मेरा मुख्य उद्देश्य नहीं है।
2. दूसरी धारणा:- यद्यपि मैं धर्म प्रेमी हूँ और मैं यह जानता हूँ कि धर्म हमें कल्याण का रास्ता बतलाता है किन्तु इस धर्म पर चलने के लिए आत्म-कल्याण में मेरी विशेष रुचि नहीं है। मैं धर्म के साथ-साथ पूर्ण भौतिक उन्नति और उस सम्बन्धी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूँ और धार्मिक क्रियाएं यदि उसमें बाधक बनती हैं तो मैं उन्हें अपनाने में असमर्थ हूँ। धर्म छूट न जाय, इसलिए उसे गौण रूप से अपने जीवन में चलाना पड़ता है। परिवर्तन के प्रति सामाजिक मान्यता का प्रश्न :
किसी भी धर्म की चाहे आचार मीमांसा हो या फिर ज्ञान मीमांसा उन्हें परिवर्तन स्वीकार करना बहुत कठिन होता है। उसकी दृष्टि में परिवर्तन का अर्थ है- भ्रष्ट । धर्म को जो गृहस्थ धारण करते हैं वे जीवन के हर क्षेत्र में परिवर्तनशील होते हैं। आचार-विचार में भी और भाषाओं में भी। समाज में परिवर्तन का अर्थ है विकास। समाज द्वन्द्व में फंस
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तुलसी प्रज्ञा अंक 129
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